पटौदी अस्पताल के इमरजेंसी नाइट ड्यूटी डॉक्टर ने मरीज को देखा ही नहीं
मरीज अस्पताल परिसर के बाहर गंेट पर खड़ी एंबुलेंस में ही लेटा रहा
मजबूरी में वापस लौटा, डॉ तरुण ने दिया टका सा जवाब ऑक्सीजन खत्म
फतह सिंह उजाला
पटौदी । ... जी हां ऐसे ही डॉक्टर और उनके व्यवहार सहित बेहद उदासीन रवैया के कारण हरियाणा सरकार सरकार , स्वास्थ्य मंत्री, जिला स्वास्थ्य विभाग , जिला प्रशासन और जनता के चुने जनप्रतिनिधि भी बदनाम होने से नहीं बच पा रहे हैं । सीधे और सरल शब्दों में ऐसे डॉक्टरों के कारण सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं पर कथित रूप से जानबूझकर सवालिया निशान भी खड़ा किया जा रहा है !
यह मामला है पटौदी के नागरिक अस्पताल का । रविवार देर रात फेफड़े में इन्फेक्शन के कारण सांस लेने में हो रही परेशानी को झेलते हुए दिल्ली से प्रभा नामक वृद्ध महिला को पटौदी के नागरिक अस्पताल में एंबुलेंस में ऑक्सीजन की सपोर्ट पर लाया गया। यहां रात को इमरजेंसी सहित अस्पताल में बनाए गए कोविड-19 एवं आइसोलेशन वार्ड की जिम्मेदारी भी ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर तरुण के ही जिम्मे थी। लेकिन पीड़ित मरीज काफी देर तक इमरजेंसी वार्ड के बाहर अस्पताल परिसर में गेट के पास ही एंबुलेंस में लेटा रहा कि कोई तो फरिश्ता डॉक्टर आकर कम से कम एक बार उसकी जांच कर ले ? यह मामला जब मीडिया की जानकारी में आया तो मौके पर मीडियाकर्मी भी पहुंचे । देखा गया एंबुलेंस में पीड़ित महिला प्रभा 58 वर्ष लेटी हुई थी , इमरजेंसी मैं ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर तरुण से जब बात की गई तो उनका बात करने का व्यवहार ही बेहद रूखा रहा।
डॉ तरुण से जब अनुरोध किया गया कि कम से कम मरीज को इमरजेंसी वार्ड में तो एडमिट कर लिया जाए , तो उन्होंने टका सा जवाब दिया की हमारे पास इस समय ऑक्सीजन बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है। अब ऐसे में लाख टके का सवाल यह है की 12 इमरजेंसी वार्ड में ड्यूटी, ऊपर से अस्पताल में बने कोविड-19 सहित आइसोलेशन सेंटर में भर्ती मारजों की भी जिम्मेदारी। जब डॉक्टर ने रोगी सहित उसके साथ आए लोगों को यह जवाब दिया की ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है ? तो क्या इससे पहले डॉ तरुण के द्वारा अपने किसी भी वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, जिला के चिकित्सा अधिकारी , सीएमओ या फिर पटौदी के एसडीएम या अन्य पैनल पर मौजूद वरिष्ठ अधिकारी को इस बात के विषय में सूचित किया कि पटौदी के अस्पताल में आपात स्थिति सहित कोविड-19-आइसोलेशन सेंटर में ऑक्सीजन की कमी है ? संभवत उन्होंने इस बात की जरूरत ही महसूस नहीं की ।
जब उन से अनुरोध किया गया की मरीज को इमरजेंसी वार्ड में तो एडमिट कर के जो भी प्राथमिक उपचार संभव है ,वह उपलब्ध करवाकर यहां से डिस्चार्ज अथवा रैफर कर दिया जाए , इस बात को भी उन्होंने पूरी तरह से अनदेखा करते हुए टका सा जवाब दिया कि एक बार बोल दिया यहां पर ऑक्सीजन ही नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मरीज की कोविड-19 रिपोर्ट साथ है या नहीं , जबकि होना यह चाहिए था कि डॉ तरुण को आपात स्थिति में पहुंचे रोगी की सबसे पहले आरटी पीसीआर जांच करनी चाहिए थी, जिसकी रिपोर्ट औसतन 15 मिनट में मिल जाती है । लेकिन उन्होंने ऐसा करना भी जरूरी नहीं समझा । न तो मेडिकल गाइड लाइन , डिजास्टर मैनेजमैंट 2005 में ऐसा कहीं भी लिखा है की आपात स्थिति में आए मरीज को बिना देखे ही उपचार से मना कर दिया जाए ? यहां तक की सुप्रीम कोर्ट की भी गाइडलाइन है किसी भी गंभीर रोगी को सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में आपात स्थिति में कम से कम प्राथमिक उपचार दिया जाना जरूरी है ।
लगता है शायद डॉ तरुण ने इससे भी कहीं कोई अधिक ऐसी पढ़ाई की हुई है जोकि डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, मेडिकल गाइडलाइन और सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत से भी अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है । अंततः हुआ यह की वृद्ध रोगी महिला को पटौदी के ही एक प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर से बात करके उनको समय के मुताबिक दिया जाने वाला इंजेक्शन लगवा कर मजबूरी में वापिस दिल्ली अपने घर लौटना पड़ गया । इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी पटौदी नागरिक अस्पताल के सीनियर मेडिकल ऑफिसर और कोविड-19 के नोडल ऑफिसर दोनों को फोन पर दे दी गई है । रविवार देर रात के इस पूरे घटनाक्रम की जो कि अस्पताल परिसर में घटित हुआ , वह सब पटौदी नागरिक अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में भी रिकॉर्ड हो चुकी है । कुल मिलाकर इस प्रकार के डॉक्टर कोरोना कोविड-19 महामारी सहित डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के साथ भी खिलवाड़ करते हुए अपनी ही मनमानी कर सरकार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
मरीज अस्पताल परिसर के बाहर गंेट पर खड़ी एंबुलेंस में ही लेटा रहा
मजबूरी में वापस लौटा, डॉ तरुण ने दिया टका सा जवाब ऑक्सीजन खत्म
फतह सिंह उजाला
पटौदी । ... जी हां ऐसे ही डॉक्टर और उनके व्यवहार सहित बेहद उदासीन रवैया के कारण हरियाणा सरकार सरकार , स्वास्थ्य मंत्री, जिला स्वास्थ्य विभाग , जिला प्रशासन और जनता के चुने जनप्रतिनिधि भी बदनाम होने से नहीं बच पा रहे हैं । सीधे और सरल शब्दों में ऐसे डॉक्टरों के कारण सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं पर कथित रूप से जानबूझकर सवालिया निशान भी खड़ा किया जा रहा है !
यह मामला है पटौदी के नागरिक अस्पताल का । रविवार देर रात फेफड़े में इन्फेक्शन के कारण सांस लेने में हो रही परेशानी को झेलते हुए दिल्ली से प्रभा नामक वृद्ध महिला को पटौदी के नागरिक अस्पताल में एंबुलेंस में ऑक्सीजन की सपोर्ट पर लाया गया। यहां रात को इमरजेंसी सहित अस्पताल में बनाए गए कोविड-19 एवं आइसोलेशन वार्ड की जिम्मेदारी भी ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर तरुण के ही जिम्मे थी। लेकिन पीड़ित मरीज काफी देर तक इमरजेंसी वार्ड के बाहर अस्पताल परिसर में गेट के पास ही एंबुलेंस में लेटा रहा कि कोई तो फरिश्ता डॉक्टर आकर कम से कम एक बार उसकी जांच कर ले ? यह मामला जब मीडिया की जानकारी में आया तो मौके पर मीडियाकर्मी भी पहुंचे । देखा गया एंबुलेंस में पीड़ित महिला प्रभा 58 वर्ष लेटी हुई थी , इमरजेंसी मैं ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर तरुण से जब बात की गई तो उनका बात करने का व्यवहार ही बेहद रूखा रहा।
डॉ तरुण से जब अनुरोध किया गया कि कम से कम मरीज को इमरजेंसी वार्ड में तो एडमिट कर लिया जाए , तो उन्होंने टका सा जवाब दिया की हमारे पास इस समय ऑक्सीजन बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है। अब ऐसे में लाख टके का सवाल यह है की 12 इमरजेंसी वार्ड में ड्यूटी, ऊपर से अस्पताल में बने कोविड-19 सहित आइसोलेशन सेंटर में भर्ती मारजों की भी जिम्मेदारी। जब डॉक्टर ने रोगी सहित उसके साथ आए लोगों को यह जवाब दिया की ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है ? तो क्या इससे पहले डॉ तरुण के द्वारा अपने किसी भी वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, जिला के चिकित्सा अधिकारी , सीएमओ या फिर पटौदी के एसडीएम या अन्य पैनल पर मौजूद वरिष्ठ अधिकारी को इस बात के विषय में सूचित किया कि पटौदी के अस्पताल में आपात स्थिति सहित कोविड-19-आइसोलेशन सेंटर में ऑक्सीजन की कमी है ? संभवत उन्होंने इस बात की जरूरत ही महसूस नहीं की ।
जब उन से अनुरोध किया गया की मरीज को इमरजेंसी वार्ड में तो एडमिट कर के जो भी प्राथमिक उपचार संभव है ,वह उपलब्ध करवाकर यहां से डिस्चार्ज अथवा रैफर कर दिया जाए , इस बात को भी उन्होंने पूरी तरह से अनदेखा करते हुए टका सा जवाब दिया कि एक बार बोल दिया यहां पर ऑक्सीजन ही नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मरीज की कोविड-19 रिपोर्ट साथ है या नहीं , जबकि होना यह चाहिए था कि डॉ तरुण को आपात स्थिति में पहुंचे रोगी की सबसे पहले आरटी पीसीआर जांच करनी चाहिए थी, जिसकी रिपोर्ट औसतन 15 मिनट में मिल जाती है । लेकिन उन्होंने ऐसा करना भी जरूरी नहीं समझा । न तो मेडिकल गाइड लाइन , डिजास्टर मैनेजमैंट 2005 में ऐसा कहीं भी लिखा है की आपात स्थिति में आए मरीज को बिना देखे ही उपचार से मना कर दिया जाए ? यहां तक की सुप्रीम कोर्ट की भी गाइडलाइन है किसी भी गंभीर रोगी को सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में आपात स्थिति में कम से कम प्राथमिक उपचार दिया जाना जरूरी है ।
लगता है शायद डॉ तरुण ने इससे भी कहीं कोई अधिक ऐसी पढ़ाई की हुई है जोकि डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, मेडिकल गाइडलाइन और सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत से भी अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है । अंततः हुआ यह की वृद्ध रोगी महिला को पटौदी के ही एक प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर से बात करके उनको समय के मुताबिक दिया जाने वाला इंजेक्शन लगवा कर मजबूरी में वापिस दिल्ली अपने घर लौटना पड़ गया । इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी पटौदी नागरिक अस्पताल के सीनियर मेडिकल ऑफिसर और कोविड-19 के नोडल ऑफिसर दोनों को फोन पर दे दी गई है । रविवार देर रात के इस पूरे घटनाक्रम की जो कि अस्पताल परिसर में घटित हुआ , वह सब पटौदी नागरिक अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में भी रिकॉर्ड हो चुकी है । कुल मिलाकर इस प्रकार के डॉक्टर कोरोना कोविड-19 महामारी सहित डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के साथ भी खिलवाड़ करते हुए अपनी ही मनमानी कर सरकार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।