पूंजीपतियों-कालाबाजारी का पोषक और अन्नदाता के शोषक

85 प्रतिशत किसानों को इस अध्यादेश से कोई भी लाभ नही

फतह सिंह उजाला
पटौदी।  
 इंडियन नेशनल लोकदल के प्रदेश प्रवक्ता सुखबीर तंवर ने राष्ट्र में कृषि अध्यादेशों पर चल रहे गतिरोध पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि अध्यादेश और आवश्यक वस्तु अधिनियम संसोधन जल्दबाजी और वैश्विक महामारी कोरोना की आड़ में पिछले दरवाजे से किया गया छल है। तीनों अध्यादेशों की कमियां और दुष्प्रभाव के संदर्भ में विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 में न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई उल्लेख होना, सरकारी अधिकारियों को शिकायत के निदान का सर्वेसर्वा बनाना, न्यायालय का अधिकार क्षेत्र समाप्त कर देना, कृषि उपज विपणन समितियों की भूमिका सीमित करके प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी बढ़ाकर पूंजीपतियों को पोषित करने का प्रयास, चूंकि राष्ट्र में 85 प्रतिशत से अधिक किसान दो एकड़ से कम कृषि भूमि के मालिक जिनकी यांत्रिक, भंडारण, परिवहन और आर्थिक क्षमता बेहद कमजोर है।

इनेलो नेता तंवर ने कहा कि, अध्यादेश से करीब 85 प्रतिशत किसानों को किसी प्रकार का लाभ नही होगा। अपितु पूंजीपतियों द्वारा निर्मित कंपनियों के हाथ का खिलौना बन जायेगा। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 के अधिसूचित होने के चार महीने बाद भी कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए दिशा निर्देश तय नही। इस अध्यादेश के अंतर्गत किये गए समझौता को न्यायिक विवेचन और राज्य सरकार के कानून या नियम के दायरे से बाहर रखा जाना राष्ट्र के संघीय ढांचा के प्रतिकूल है। कृषि उपज की गुणवत्ता पूर्णतया किसान की जिम्मेदारी, किसान समझौता नही तोड़ सकता और कंपनी कांट्रेक्ट फार्मिंग पर वित्तीय संस्थाओं से ऋण ले सकता है। परंतु आकस्मिक परिस्थितियों में भी अपनी जमीन को गिरवी नही रख सकता। किसान अपनी ही जमीन पर बंधुआ मजदूर बनने को मजबूर हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि वैश्विक सच ये है कि सदियों से निरंतर पूंजीपतियों द्वारा मजदूर का शोषण किया जाता रहा है। आवश्यक वस्तु (संसोधन) अध्यादेश, 2020 में अनाज, तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के दायरे से बाहर किया जाना किसान और उपभोक्ता के लिए घातक है। इस संसोधन अध्यादेश से कालाबाजारी को पोषण मिलना तय है। अगर केंद्र सरकार इन अध्यादेशों को किसान हितैषी मानती है तो राष्ट्र के स्तर पर तीनों अध्यादेशों पर किसान संगठनों, सभी राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों से व्यापक संवाद करें और आपत्तिजनक उपबंधों को परिवर्तित करके किसान वर्ग की शंकाओं को दूर करे। वर्तमान परिस्थितियों में इन तीनों अध्यादेशों का सीधा लाभ बड़े पूंजीपतियों को और किसान का नुकसान तय है। बड़े पूंजीपति अपनी  वित्तीय शक्ति और भंडारण क्षमता से किसान की मजबूरी का फायदा उठा कर कृषि उपज को सस्ता खरीदकर भंडारण करेंगे। स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा के दृष्टिगत हर फसल पर लागत़ 50 प्रतिशत का न्यूनतम मूल्य का समावेश होना अत्यंत आवश्यक है। सरकार विकसित देशों की नकल करने की बजाय राष्ट्र के किसान की वर्तमान स्थिति के अनुरूप सही निर्णय करें।
Previous Post Next Post