जुर्माना नही भरने पर 3 महीने की जेल व 3 महीने प्रैक्टिस पर रोक लग सकती है।
मनीषबलवान सिंह जांगड़ा
हिसार। सुप्रीम कोर्ट अवमानना मामले में जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली सविंधान पीठ ने वरिष्ठ वकील व सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को 1 रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई है, जुर्माना नही भरने पर 3 महीने की जेल और तीन साल तक कोर्ट में प्रैक्टिस पर भी रोक लगाई जा सकती है।
सोमवार को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया की कोर्ट का फ़ैसला किसी प्रकाशन या मीडिया में आए विचारों या बयानों से प्रभावित नही हो सकता। अदालत ने कहा कि कोर्ट के विचार किए जाने से पहले ही प्रशांत भूषण के प्रेस को दिए बयान कार्यवाही को प्रभावित करने वाले थे।
कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि जनवरी 2018 में की गई सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेस भी सही नही थी। न्यायाधीशों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की अपेक्षा नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए।
इससे पहले 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ़ जस्टिस व सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के मामले को दोषी पाए जाने पर सजा का फैसला सुरक्षित रख लिया था।
प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में अपने बयानों को लेकर यह कहते हुए माफी मांगने से मना कर दिया था कि उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते वर्तमान या पूर्व चीफ जस्टिस की स्वस्थ आलोचना करने का अधिकार है।
क्या है पूरा मामला।
बीते 29 जून को सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एसएस बोबडे की सुपरबाइक हार्ले डेविडसन पर फ़ोटो को लेकर ट्वीट पर उन्होंने कहा कि उनका ट्वीट पिछले तीन महीनों से अधिक समय तक होने वाली पीड़ा को रेखांकित करता है, नागरिक में मौलिक अधिकारों के तहत देश में डिटेंशन कैम्प में बंद, पीड़ित व गरीब व अन्य जो गंभीर समस्या से गुजर रहे हैं, को लेकर कोई सुनवाई नही हुई।
वहीं 27 जून को प्रशांत भूषण द्वारा एक ट्वीट में
बता दें कि 27 जून को एक ट्वीट करते हुए भूषण ने पिछले छह सालों में औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायधीश, जस्टिस एसएस बोबडे, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जेएस खेहर की भूमिका की आलोचना की थी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट की अवमानना का मुकद्दमा चला जिसकी सुनवाई पांच जजों की सविंधानिक पीठ ने की जिसकी अध्यक्षता जस्टिस अरुण मिश्रा ने की।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी को लेकर प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी पाया था. बाद में जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने 25 अगस्त को सज़ा पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने कहा कि गलती होने पर माफ़ी मांगने में कोई हर्ज़ नही है।
मगर भूषण की ओर से पेश वकील डॉक्टर राजीव धवन ने कहा कि भूषण कोर्ट का सम्मान करते हैं मगर पिछले चार चीफ़ जस्टिस को लेकर उनकी अपनी एक राय है।
उधर मोदी सरकार के सबसे बड़े वकील के.के. वेणुगोपाल ने अदालत में कहा था कि, "उच्च जूडिशरी में भ्रष्टाचार को लेकर कई मौजूदा और रिटायर्ड जजों ने टिप्पणी की है। ऐसे में भूषण अगर अपने शब्दों पर खेद प्रकट करते हैं तो उन्हें चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है।"
क्या होती है कोर्ट की अवमानना।
न्यायालय अवमानना एक्ट 1971, के तहत न्यायालय की प्रतिष्ठा या उसके अधिकारों के प्रति असम्मान प्रकट करना अपराध है।
इस अधिनियम को सिविल व आपराधिक, दो भागों में बांटा गया है। सिविल अवमानना के तहत किसी रीट,डिक्री या आदेश का जानबूझकर उल्लंघन करना शामिल है व आपराधिक अवमानना के तहत न्यायालय से जुड़ी किसी ऐसी बात के प्रकाशन से है जोकि लिखित, मौखिक, चिह्नित या चित्रित सामग्री से है जिससे कोर्ट की अवमानना होती हो।
सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय कोर्ट को अवमानना को लेकर सजा सुनाने का अधिकार प्राप्त है। जिसके तहत 6 महीने का कारावास या 2 हज़ार रुपये जुर्माना या दोनों एक साथ हो सकते हैं।
न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 10 के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायलयों को भी अवमानना के लिए दंडित करने का विशेष अधिकार प्राप्त है।