आखिर ऐसी क्या मजबूरी कि मानसून में ही हो रहा विकास

आधे घंटे की बरसात में हेलीमंडी में बाढ़ से भी बुरे हालात

दर्जनों दुकानदार बरसाती पानी में बन गए दुकानों में बंधक

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 खरा और कड़वा फिर वही सवाल, कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि मानसून और बरसात के सीजन के दौरान ही विकास कार्यों की झड़ी बरसात की झड़ी की तरह ही शुरू होती है । यह अपने आप में बहुत बड़ा और गंभीर सवाल है । यह सवाल अब आम जनता के द्वारा किया जाने लगा है और ऐसे सवालों का जवाब अधिकारियों के पास भी नहीं होगा?  यह  अधिकारी उन विभागों के अधिकारी हैं, जो कि कथित रूप से मिलकर विकास की योजनाएं तैयार करते हैं । कथित रूप से संभवत यह ध्यान नहीं रखा जाता कि विकास कार्य के लिए सबसे उचित समय कौन सा हो सकता है, कि होने वाले विकास कार्य का आम जनमानस को लंबे समय तक लाभ मिल सके ।

कुछ दिन पहले ही एशिया की विख्यात रही हेलीमंडी अनाज मंडी क्षेत्र में मुख्य प्रवेश मार्ग पर जो कि लगभग 60 फुट चैड़ा है, उसके निर्माण के लिए करीब 55 लाख रुपए का टेंडर होने के बाद काम आरंभ कर दिया गया । काम आरंभ होते ही समस्याएं पाताल से ऐसे निकल पड़ी कि मानो वह लंबे समय से इंतजार कर रही थी कि हम भी अपना दुखड़ा सुनाएं ? करीब 3 वर्ष पहले भी इसी सड़क मार्ग को मोटी रकम पालिका प्रशासन के द्वारा खर्च करके सौंदर्यकाण किया गया था । लेकिन ऐसा क्या हुआ , क्या योजना बनी , क्या मजबूरी आई,  कौन सा कथित राजनीतिक दबाव था या फिर अपना ही कोई स्वार्थ था? 55 लाख रुपए की राशि का फिर से टेंडर सड़क निर्माण के लिए छोड़ दिया गया।
विकास कार्य होने चाहिए , हम विरोधी नहीं समर्थक हैं । लेकिन सवाल फिर वही विकास कार्यों में पारदर्शिता रहेगी तो सवाल भी नहीं उठेंगे । गुरुवार को एक बार फिर से हुई बरसात में सवाल उठ गया कि विकास के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है या फिर पैसा ही पानी में बहाया जा रहा है? जानकारों की माने तो जिस स्थान पर 60 फुट चैड़ा रोड  बन रहा है, दर्जनों दुकानें हैं आलीशान शोरूम है, बैंक हैं और यहां पर करीब करीब 2 से ढाई फुट गहराई मैं सड़क को खुदाई करके छोड़ दिया गया। और बरसात होने के बाद यहां के तमाम दुकानदार अपनी-अपनी दुकानों में एक तरह से बंधक ही बनकर रह गए।  1 दिन बाद ही राखी का त्यौहार है, त्योहार की खरीदारी के लिए आने वाले ग्रामीण क्षेत्र के लोग विशेष रूप से महिलाएं बहुत अधिक परेशान हुई। नं तो वह खरीदारी के लिए संबंधित दुकानों में जा सके और ना ही दुकानदारों को ग्राहकों के आने का कोई लाभ मिल सका। हालात यह बने कि यहां करीब 15 से 20 साल पुराना पेड़ भी धराशाई हो गया।  जिस पेड़ को बड़ा होने में 20 साल लगे वह तीन-चार दिन में ही दम तोड़ गया। अब इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ।
एक थ्री व्हीलर के अंदर अनजाने में सवारियां आ रही थी, चालक को नहीं मालूम था कि बीच में सड़क में खड्ड़ा है , वह सीवर का है या कोई और है ? सौभाग्य से हादसा होते-होते बच गया, आसपास के दुकानदारों ने दौड़कर थ्री व्हीलर में बैठी सवारियों को जैसे-तैसे बचा कर निकाला अन्यथा बुजुर्ग सवारियों के साथ कोई भी गंभीर हादसा हो सकता था। जब योजनाएं ढंग से नहीं बनेगी विभाग के अधिकारियों में तालमेल नहीं होगा तो ऐसी समस्याएं कभी भी समाप्त नहीं होंगी। स्थानीय प्रबुद्ध दुकानदारों लोगों का अब सीधे-सीधे कहना ही नहीं सरकार से मांग है की ऐसा क्या कारण है की मानसून और बरसात के दौरान ही विकास कार्य आरंभ किए जाते हैं और यह सब किसके इशारे पर किस के निर्देश पर या फिर राजनीतिक जवाब या फिर इससे आगे अपने स्वार्थ को साधने के लिए इस प्रकार के कार्य आरंभ करने को प्राथमिकता दी जाती है । इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए कि आखिर सरकार के पैसे का कथित रूप से दुरुपयोग क्यों हो रहा है ।

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