अस्पताल में ऑक्सीजन मौजूद मरीज से मंगवाए सिलेंडर
मामला उच्चाधिकारी के संज्ञान में लाने पर दी सरकारी ऑक्सीजन
अंततः उपचाराधीन युवक को सरकारी अस्पताल से कर दिया रैफर
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । कोरोना कॉविड 19 के बेकाबू और प्रचंड होने के साथ-साथ ऑक्सीजन के लिए जबरदस्त मारामारी मची हुई है । शासन प्रशासन सहित सरकार के द्वारा दावे किए जा रहे हैं कि सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं । लेकिन सरकारी अस्पतालों से ही ऐसी जानकारी बाहर निकल कर आ रही है जोकि पूरी व्यवस्था को सवालों के घेरे में भी खड़ा कर रही है । कहीं ऐसा तो नहीं है की सरकारी अस्पतालों में कार्यरत कुछ लोगों के द्वारा शासन प्रशासन के साथ-साथ सरकार की छवि को भी बट्टा लगाने का काम किया जा रहा है ?
ऐसा ही मामला एक सरकारी अस्पताल का सामने आया है । एक युवक को करोना पाॅजिटिव की रिपोर्ट आने के बाद होम आइसोलेशन में रखा गया । लेकिन इस दौरान उसे सांस लेने में भी परेशानी होने लगी, परिजन जैसे तैसे ऑक्सीजन का सिलेंडर भी कहीं ना कहीं से भी लेकर आ गए। इसके बाद में युवक को एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया , वहां से युवक को सरकारी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। सरकारी अस्पताल में एडमिट किया जाने के बाद युवक के तीमारदारों को फरमान जारी किया गया कि अस्पताल में ऑक्सीजन का अलार्म बोल चुका है , युवक के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था तीमारदारों को ही करनी होगी । जबकि इससे पहले संबंधित सरकारी अस्पताल में उपलब्ध सीमित संसाधनों को देखते हुए युवक के तीमारदारों के द्वारा यह लिखित में दे दिया गया था कि जो भी संसाधन अस्पताल में उपलब्ध है उसके मुताबिक उपचार किया जाए , किसी भी प्रकार की अनहोनी के लिए तीमारदार स्वयं जिम्मेदार होंगे ।
उपचार आरंभ किया जाने से पहले टेस्ट किया जाने पर युवक की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई । युवक का ऑक्सीजन लेवल औसतन 80 से 90 के बीच में ऑक्सीजन सिलेंडर की सपोर्ट पर नियमित रूप से बना हुआ था । सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन बेड पर उपलब्ध होने के बावजूद भी युवक के तीमारदारों से दवाब बनाकर युवक को ऑक्सीजन देने के लिए ऑक्सीजन के सिलेंडर मंगवाए गए । इसके बाद रविवार सुबह अचानक से युवक को रेफर करने के लिए लिख दिया गया । दूसरी ओर जो युवक के तीमारदारों के द्वारा व्यक्तिगत रूप से सिलेंडर लाए गए थे , उनकी ऑक्सीजन भी खत्म हो चुकी थी । अब ऐसे में सवाल खड़ा हो गया कि यदि युवक को बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के कहीं ले जाया जाए तो तो कैसे लेकर जाया जाए ?
इसके बाद में संबंधित अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी की जानकारी ने मामला लाया जाने पर आनन-फानन में युवक को सरकारी अस्पताल में बेड पर उपलब्ध ऑक्सीजन सपोर्ट दी गई । ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि जब सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध थी तो फिर उपचाराधीन युवक के तीमारदारों पर अपने ऑक्सीजन के सिलेंडर लाने के लिए क्यों दबाव बनाया गया ? युवक के तीमारदारों की माने तो वार्ड में मौजूद स्टाफ के सदस्यों का कहना था कि जैसा हमें डॉक्टर निर्देश देंगे हम वैसा ही कर सकते हैं । यदि ऐसा है तो इसके क्या अर्थ अथवा मायने निकाले जाएं ? सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था इतनी खराब भी नहीं है , लेकिन कहीं ना कहीं कुछ लोगों के कारण सरकारी व्यवस्था, सरकारी अस्पताल और सरकार को भी बदनामी की मार इस आपदा की घड़ी में झेलनी ही पड़ रही है।
मामला उच्चाधिकारी के संज्ञान में लाने पर दी सरकारी ऑक्सीजन
अंततः उपचाराधीन युवक को सरकारी अस्पताल से कर दिया रैफर
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । कोरोना कॉविड 19 के बेकाबू और प्रचंड होने के साथ-साथ ऑक्सीजन के लिए जबरदस्त मारामारी मची हुई है । शासन प्रशासन सहित सरकार के द्वारा दावे किए जा रहे हैं कि सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं । लेकिन सरकारी अस्पतालों से ही ऐसी जानकारी बाहर निकल कर आ रही है जोकि पूरी व्यवस्था को सवालों के घेरे में भी खड़ा कर रही है । कहीं ऐसा तो नहीं है की सरकारी अस्पतालों में कार्यरत कुछ लोगों के द्वारा शासन प्रशासन के साथ-साथ सरकार की छवि को भी बट्टा लगाने का काम किया जा रहा है ?
ऐसा ही मामला एक सरकारी अस्पताल का सामने आया है । एक युवक को करोना पाॅजिटिव की रिपोर्ट आने के बाद होम आइसोलेशन में रखा गया । लेकिन इस दौरान उसे सांस लेने में भी परेशानी होने लगी, परिजन जैसे तैसे ऑक्सीजन का सिलेंडर भी कहीं ना कहीं से भी लेकर आ गए। इसके बाद में युवक को एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया , वहां से युवक को सरकारी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। सरकारी अस्पताल में एडमिट किया जाने के बाद युवक के तीमारदारों को फरमान जारी किया गया कि अस्पताल में ऑक्सीजन का अलार्म बोल चुका है , युवक के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था तीमारदारों को ही करनी होगी । जबकि इससे पहले संबंधित सरकारी अस्पताल में उपलब्ध सीमित संसाधनों को देखते हुए युवक के तीमारदारों के द्वारा यह लिखित में दे दिया गया था कि जो भी संसाधन अस्पताल में उपलब्ध है उसके मुताबिक उपचार किया जाए , किसी भी प्रकार की अनहोनी के लिए तीमारदार स्वयं जिम्मेदार होंगे ।
उपचार आरंभ किया जाने से पहले टेस्ट किया जाने पर युवक की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई । युवक का ऑक्सीजन लेवल औसतन 80 से 90 के बीच में ऑक्सीजन सिलेंडर की सपोर्ट पर नियमित रूप से बना हुआ था । सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन बेड पर उपलब्ध होने के बावजूद भी युवक के तीमारदारों से दवाब बनाकर युवक को ऑक्सीजन देने के लिए ऑक्सीजन के सिलेंडर मंगवाए गए । इसके बाद रविवार सुबह अचानक से युवक को रेफर करने के लिए लिख दिया गया । दूसरी ओर जो युवक के तीमारदारों के द्वारा व्यक्तिगत रूप से सिलेंडर लाए गए थे , उनकी ऑक्सीजन भी खत्म हो चुकी थी । अब ऐसे में सवाल खड़ा हो गया कि यदि युवक को बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के कहीं ले जाया जाए तो तो कैसे लेकर जाया जाए ?
इसके बाद में संबंधित अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी की जानकारी ने मामला लाया जाने पर आनन-फानन में युवक को सरकारी अस्पताल में बेड पर उपलब्ध ऑक्सीजन सपोर्ट दी गई । ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि जब सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध थी तो फिर उपचाराधीन युवक के तीमारदारों पर अपने ऑक्सीजन के सिलेंडर लाने के लिए क्यों दबाव बनाया गया ? युवक के तीमारदारों की माने तो वार्ड में मौजूद स्टाफ के सदस्यों का कहना था कि जैसा हमें डॉक्टर निर्देश देंगे हम वैसा ही कर सकते हैं । यदि ऐसा है तो इसके क्या अर्थ अथवा मायने निकाले जाएं ? सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था इतनी खराब भी नहीं है , लेकिन कहीं ना कहीं कुछ लोगों के कारण सरकारी व्यवस्था, सरकारी अस्पताल और सरकार को भी बदनामी की मार इस आपदा की घड़ी में झेलनी ही पड़ रही है।