अभी भी मंडी परिसर में खुले आसमान के नीचे गेहूं के ढेर

गेंहूं की सरकारी खरीद कई दिन पहले ही हो चुकी है बंद

गेहूं कट्टों में भरने से लेकर लिफ्टिंग की बरसात ने खोली पोल

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 कोरोना कोविड-19 महामारी को देखते हुए हरियाणा में जाटौली अनाज मंडी सहित अन्य मंडियों में भी गेहूं की सरकारी खरीद का कार्य बंद किया जा चुका है । लेकिन गुरुवार को सरकारी  खरीदे गए गेहूं के कट्टों की लिफ्टिंग, गेहूं को कट्टों में भरने की पोल अचानक हुई बरसात के बीच में खुल गई।

जानकारी के मुताबिक जाटौली अनाज मंडी परिसर में गेहूं की सरकारी खरीद पूरी होने के बाद अभी भी लगभग 70000 कट्टे गेहूं की लिफ्टिंग यहां से नहीं हो सकी है । गुरुवार को हुई अचानक बरसात के बीच अनाज मंडी परिसर में खुले आसमान के नीचे लगे गेहूं के ढेर और बिना ढके गेहूं के भरे कट्टपूरी कहां से बरसात के पानी में तर हो गए। गुरुवार को दोपहर बाद अचानक मौसम बदला और पटौदी , हेली मंडी सहित फरुखनगर क्षेत्र में बरसात के साथ ओले गिरने की भी सूचना है ।

बरसात होने के बाद जाटौली अनाज मंडी परिसर का दौरा किया गया तो देखा गया कि ढलान वाले स्थानों पर लगे गेहूं के ढेर बरसाती पानी में डूबे दिखाई दिए और मंडी परिसर में काम करने वाले मजदूर झाड़ू से गेहूं को एकत्रित करते दिखाई दिए । जाटौली अनाज मंडी परिसर में अनेक स्थानों पर खुले में पड़े गेहूं के ढेर तेज बरसात के बीच पूरी तरह से तर हो गए और आसमान से होती बरसात के बीच यह काम करने वाले मजदूर आनन-फानन में गेहूं के ढेरों को तिरपाल इत्यादि से ढ़कते हुए दिखाई दिए। जिस प्रकार से गेहूं के ढेर बरसात के पानी में पूरी तरह से तर हो चुके हैं, ऐसे में मौसम साफ होने तक इस गेहूं के ढेरों को सुखाकर ही कट्टो में भरना संभव हो सकेगा।

ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि मंडी परिसर में जो भी गेहूं के कट्टे और गेहूं के ढेर पढ़े हुए हैं , वह अब सरकारी खरीद एजेंसी का माल है या फिर किसान अथवा व्यापारी का माल कहा जाएगा ? नियम के मुताबिक गेट पास बनने के बाद ही अनाज मंडी से जब खरीदा गया गेहूं लिफ्ट होकर बाहर निकलेगा उसके बाद ही तकनीकी रूप से इस की सरकारी खरीद मानी जाती हैं। इन सब बातों के अलावा सीधी सीधी बात यही है कि जाटौली अनाज मंडी परिसर में फसलों की सरकारी खरीद के दौरान बरसात होने की स्थिति में बचाने के लिए किसी भी प्रकार की कोई ठोस व्यवस्था या फिर सुविधा उपलब्ध ही नहीं है। जिसका खामियाजा किसान सहित व्यापारी कको ही भुगतना पडता है।

Previous Post Next Post