होलिका थी वास्तव में अहंकार और बुराई का प्रतीक
बहुत पवित्र और भाईचारा मजबूत बनाने का त्योहार
जौं और गेंहू की बालियां भूनने की रही है परंपरा
फतह सिंह उजाला
पटौदी। होलिका दहन से सीख लेते हुए हमें अपने मन के विकारों को मजबूत इच्छा शक्ति के द्वारा त्याग करना चाहिए। होलिका, वास्तव में अहंकार और बुराई का प्रतीक थी। भगवान का भक्क्त प्रहलाद सत्य और समर्पण की प्रेरणा है। होलिका तो दहन के समय भस्म हो गई, लेकिन भगवान का सच्चा भक्त सुरक्षित बच गया। आज होलिका अपना स्वरूप बदल कर बुराई के रूप में समाज में जड़े जमा रही है। नेकी और सत्य के अनुयायी पर होलिका रूपी बुराई का कोई असर नहीं होता। होली के मौके पर इस त्योहार के महत्व पर प्रकाश डालते हुए यह बात महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कही।
इसी मौके उन्होंने कहा कि, बुराई के अंत के बाद, समाज में किसी भी प्रकार का आपसी वैमनस्य अर्थात मनभेद-मतभेद नहीं बचा के रखना चाहिए। होली का पर्व भारतीय समाज में बहुत पवित्र और भाईचारे को मजबूत बनाने का त्योहार है। जैसे ईद के बाद में मुस्लिम सभी वर्गों के साथियों के गले मिलते हैं, लेकिन इस बार कोरोना कोविड-19 महामारी और इसके संक्रमण को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य विभाग के साथ सरकार के द्वारा बचाव के निर्देशों का पालन करते हुए कोरोना कोविड 19 को समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए।
रविवार को शहर के अलावा पटौदी, हेलीमंडी, फर्रूखनगर और बोहड़ाकला में हालिका का विधिविधान के साथ पूजन प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा के अनुसार महिलाओं ने किया। विभिन्न स्थानों पर होलिका के प्रतीक स्वरूप लकड़ियां, झाड़ियां इत्यादि डालकर होलिका बनाई गई। पुत्र के लंबे जीवन और आजीवन खुशहाली की कामना के साथ महिलाओं ने पूजन किया। बच्चों को मूंगफली, टॉफी, बिस्कुट, सूखा गोला सहित अन्य चीजों की माला पहना कर माताओं और महिलाओं ने अपने साथ ले जाकर होलिका का पूजन करवाया।
महिलाओं ने रखा पुत्रों के लिए उपवास
होलिका दहन के दिन रविवार को माताओं और महिलाओं ने उपवास भी रखा। महिलाएं तीज-त्योहार के मौके पर पहने जाने वाले ओढ़नी, पीलिया, चूंदड़ी इत्यादि पहन कर विधिविधान से की जाने वाली पूजन सामग्री लेकर मंगल गीत गाती हुई होलिका पूजन के लिए देर सायं तक आती-जाती रही। महिलाओं नें कच्चे सूत के साथ होलिका का पूजन करते जल भी अर्पित किया। होली का त्योहार किसानों के लिए भी अलग ही महत्व रखता है। होली पूजन के दिन तक जौं और गेंहू की फसल करीब करीब पक कर तैयार हो जाती है। होलिका दहन के समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में जौं और गेंहू की बालियां भूूनने की परंपरा है। शुभ समय के अनुसार होलिका पूजन किया गया और देर सायं विधिविधान से होलिका का पूजन कर दहन किया गया।
किया गया गुरु और गद्दी का पूजन
होली पूजन के दिन गुरु पूजा की भी परंपरा है। गुरु और गद्दी की श्रद्घालुओं के द्वारा इस दिन पिशेष रूप से पूजा की जाती है। हजरत बाबा सैयद नुरुद्दीन धर्मार्थ ट्रस्ट के चेयरमैन एंव पंडित कैलाशचंद बाली के शिष्य सैयद एजाज हुसैन जैदी ने रविवार को गुरु और गद्दी का पूजन किया। इस मौके पर जज्जू बाबा ने आपसी भाईचारे, अमनचैन, देश की तरक्की सहित एकता-अखंडता और कोरोना काविड -19 महामारी की समाप्ति के लिए हजरत बाबा सैयद नुरुद्दीन से दुआ की। दूर दराज से आए हुए श्रद्घालुओं ने भी दरबार में मन्नमत मांगते हुए गुरु-गद्दी का पूजनकर आशिर्वाद लिया।
बहुत पवित्र और भाईचारा मजबूत बनाने का त्योहार
जौं और गेंहू की बालियां भूनने की रही है परंपरा
फतह सिंह उजाला
पटौदी। होलिका दहन से सीख लेते हुए हमें अपने मन के विकारों को मजबूत इच्छा शक्ति के द्वारा त्याग करना चाहिए। होलिका, वास्तव में अहंकार और बुराई का प्रतीक थी। भगवान का भक्क्त प्रहलाद सत्य और समर्पण की प्रेरणा है। होलिका तो दहन के समय भस्म हो गई, लेकिन भगवान का सच्चा भक्त सुरक्षित बच गया। आज होलिका अपना स्वरूप बदल कर बुराई के रूप में समाज में जड़े जमा रही है। नेकी और सत्य के अनुयायी पर होलिका रूपी बुराई का कोई असर नहीं होता। होली के मौके पर इस त्योहार के महत्व पर प्रकाश डालते हुए यह बात महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कही।
इसी मौके उन्होंने कहा कि, बुराई के अंत के बाद, समाज में किसी भी प्रकार का आपसी वैमनस्य अर्थात मनभेद-मतभेद नहीं बचा के रखना चाहिए। होली का पर्व भारतीय समाज में बहुत पवित्र और भाईचारे को मजबूत बनाने का त्योहार है। जैसे ईद के बाद में मुस्लिम सभी वर्गों के साथियों के गले मिलते हैं, लेकिन इस बार कोरोना कोविड-19 महामारी और इसके संक्रमण को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य विभाग के साथ सरकार के द्वारा बचाव के निर्देशों का पालन करते हुए कोरोना कोविड 19 को समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए।
रविवार को शहर के अलावा पटौदी, हेलीमंडी, फर्रूखनगर और बोहड़ाकला में हालिका का विधिविधान के साथ पूजन प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा के अनुसार महिलाओं ने किया। विभिन्न स्थानों पर होलिका के प्रतीक स्वरूप लकड़ियां, झाड़ियां इत्यादि डालकर होलिका बनाई गई। पुत्र के लंबे जीवन और आजीवन खुशहाली की कामना के साथ महिलाओं ने पूजन किया। बच्चों को मूंगफली, टॉफी, बिस्कुट, सूखा गोला सहित अन्य चीजों की माला पहना कर माताओं और महिलाओं ने अपने साथ ले जाकर होलिका का पूजन करवाया।
महिलाओं ने रखा पुत्रों के लिए उपवास
होलिका दहन के दिन रविवार को माताओं और महिलाओं ने उपवास भी रखा। महिलाएं तीज-त्योहार के मौके पर पहने जाने वाले ओढ़नी, पीलिया, चूंदड़ी इत्यादि पहन कर विधिविधान से की जाने वाली पूजन सामग्री लेकर मंगल गीत गाती हुई होलिका पूजन के लिए देर सायं तक आती-जाती रही। महिलाओं नें कच्चे सूत के साथ होलिका का पूजन करते जल भी अर्पित किया। होली का त्योहार किसानों के लिए भी अलग ही महत्व रखता है। होली पूजन के दिन तक जौं और गेंहू की फसल करीब करीब पक कर तैयार हो जाती है। होलिका दहन के समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में जौं और गेंहू की बालियां भूूनने की परंपरा है। शुभ समय के अनुसार होलिका पूजन किया गया और देर सायं विधिविधान से होलिका का पूजन कर दहन किया गया।
किया गया गुरु और गद्दी का पूजन
होली पूजन के दिन गुरु पूजा की भी परंपरा है। गुरु और गद्दी की श्रद्घालुओं के द्वारा इस दिन पिशेष रूप से पूजा की जाती है। हजरत बाबा सैयद नुरुद्दीन धर्मार्थ ट्रस्ट के चेयरमैन एंव पंडित कैलाशचंद बाली के शिष्य सैयद एजाज हुसैन जैदी ने रविवार को गुरु और गद्दी का पूजन किया। इस मौके पर जज्जू बाबा ने आपसी भाईचारे, अमनचैन, देश की तरक्की सहित एकता-अखंडता और कोरोना काविड -19 महामारी की समाप्ति के लिए हजरत बाबा सैयद नुरुद्दीन से दुआ की। दूर दराज से आए हुए श्रद्घालुओं ने भी दरबार में मन्नमत मांगते हुए गुरु-गद्दी का पूजनकर आशिर्वाद लिया।