पुलिस द्वारा दर्ज़ सभी मुकद्दमों के तहत एफआईआर को कोर्ट ने रद्द करने का फैसला सुनाते हुए कहा कि विदेशी नागरिकों पर मुकद्दमा द्वेष भावना व प्रोपोगेंडा की भावना से लिप्त था।
मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार
कोरोना संकट की शुरुआत में भारतीय मीडिया ने तब्लीगी जमात खूब चर्चा में रही। तब्लीगी जमात को लेकर न्यूज़ चैनलों में प्राइम टाइम पर खूब बहस हुई। जमात ज़िहाद,धर्म के नाम पर कब तक अधर्म, से लेकर कोरोना जमात जैसी हैडलाइन के साथ आम जनता में साम्प्रदायिकता का प्रसार किया गया।
विदेशी जमातियों द्वारा बॉम्बे हाइकोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई में सख़्त टिप्पणी करते हुए फैसला सुनाया कि भारतीय मीडिया व सरकार ने तब्लीगी जमात को प्रोपोगेंडा के तहत 'बलि का बकरा' बनाया गया। शुक्रवार को कोर्ट ने 29 विदेशी नागरिकों पर दर्ज़ एफआईआर को रद्द कर दिया। पुलिस द्वारा आईपीसी(भारतीय दंड सहिंता), महामारी रोग अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम व विदेशी नागरिक अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत केस दर्ज़ किया गया था। पुलिस ने एफआईआर टूरिस्ट वीजा का उल्लंघन कर दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन में तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने पर केस दर्ज़ किया था।
पुलिस ने विदेशी जमातियों को शरण देने पर 6 भारतीयों व मस्जिद ट्रस्टों पर भी केस दर्ज़ किया था।
औरंगाबाद पीठ के जस्टिस टीवी नलवाड़े, जस्टिस एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने याचिकर्ताओं की ओर से तीन अलग-अलग याचिकाओं को सुना जोकि आइवरी कोस्ट, घाना, तंजानिया, जिबूती, बेनिन और इंडोनेशिया जैसे देशों से सम्बंधित हैं। कोर्ट नेब
भारत का संस्कृति, दर्शन व भोजन का अनुभव करने आये थे।
याचिकर्ताओं ने कोर्ट में दलील दी की वे वैध भारतीय वीजा पर भारतीय संस्कृति, आथित्य, व भोजन का अनुभव करने आए थे। उन्होंने कहा कि भारत पहुंचने के बाद हवाई अड्डे पर उनकी कोरोना संक्रमण की जांच भी हुई थी, उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद उन्हें एयरपोर्ट से जाने की अनुमति दी गई।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि अहमदनगर के पुलिस अधीक्षक को जानकारी दी थी। 23 मार्च के बाद लॉकडाउन के कारण वाहनों की आवाजाही रोक दी गयी थी जिसके चलते उन्होंने मस्जिद में शरण ली थी। वे डीसी के आदेश के उल्लंघन सहित किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल नही थे। उन्होंने कहा कि मर्कज़ में भी उन्होंने सरकार द्वारा निर्धारित तमात निर्देशों का पालन किया। उनका तर्क था की वीजा के नियमों के मुताबिक उन्हें स्थानीय अधिकारियों द्वारा अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बताने के लिए नही कहा गया था लेकिन फिर भी उन्होंने डीसी व जिला एसपी को सूचित किया था। इसके अलावा उनकी मुख्य दलील ये थी कि वीजा के नियमों के तहत धार्मिक स्थलों पर जाना कानून का उल्लंघन नही है।
मीडिया में बड़े स्तर पर विदेशी नागरिकों के खिलाफ प्रोपोगेंडा किया गया।
तब्लीगी जमात में शामिल हुए विदेशी नागरिकों को लेकर मीडिया में कवरेज़ पर जस्टिस नलवाड़े ने आलोचना करते हुए कहा,"प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़े स्तर पर, मर्क़ज दिल्ली में शामिल होने वाले विदेशी नागरिकों के खिलाफ प्रोपेगंडा किया गया और ऐसी तस्वीर बनाने का प्रयास किया गया कि ये विदेशी भारत में कोविड-19 वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार थे। इन विदेशियों का वस्तुतः उत्पीड़न किया गया।
जब महामारी या विपत्ति आती है, तब एक राजनीतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि इस बात की संभावना है कि इन विदेशियों को 'बलि का बकरा' बनाने के लिए चुना गया था। उपरोक्त परिस्थितियों और भारत में संक्रमण के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी। अब विदेशियों के खिलाफ की गई इस कार्रवाई के बारे में पश्चाताप करने और इस तरह की कार्रवाई से हुए नुकसान की भरापाई के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाने के लिए उचित समय है।"
अतिथि देवो भव का उल्लेख करते हुए जस्टिस नलवाड़े ने कहा," वर्तमान मामले की परिस्थितिया एक सवाल पैदा करती हैं कि क्या हम वास्तव में अपनी महान परंपरा और संस्कृति के अनुसार काम कर रहे हैं? कोविड-19 महामारी के दौरान, हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने की आवश्यकता है और हमें अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है विशेष रूप से मौजूदा याचिकाकर्ताओं जेसे मेहमानों के प्रति। आरोपों से पता चलता है कि हमने उनकी मदद करने के बजाय उन्हें जेलों में बंद कर दिया और आरोप लगाया कि वे यात्रा दस्तावेजों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं, वे वायरस आदि के प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं। "