एक नहीं, दो नहीं नौ स्थानों से निकलेगी किसान परेड

शायद ही सदियों तक फिर कभी ऐसा देखने को मिले

परेड करेंगे सीमा के जवान और खलिहान के किसान

देश ही नहीं पूरी दुनिया की नजरें है, ट्रैक्टर परेड पर

फतह सिंह उजाला
वह मतदाता भी है और वह अन्नदाता भी है । मतदाता के मतदान से चुनी गई सरकार ही सत्तासीन होती है । आजादी से पहले और आजादी के बाद देश के इतिहास में अनेकों अनेक आंदोलन हुए, लेकिन मतदाता जोकि अन्नदाता भी है । अन्नदाता के द्वारा किया जा रहा आंदोलन पहली बार देखने को मिला है, और संभवत सदियों तक देखने को भी नहीं मिलेगा । 1952 के बाद में अब 2021 में 26 जनवरी के दिन परेड के तौर पर परेड में ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर दिखाई देंगे।

यह बात हर नेता ,सरकार और सत्तासीन नेता गर्व से बताते हैं कि सही मायने में भारत को देखना है तो गांव अर्थात देहात में जाकर देखो । संभवत किसी ने सोचा भी नहीं था कि समय ऐसी करवट भी बदलेगा हिंदुस्तान के दिल दिल्ली में ही साक्षात देहात को देखने का मौका देशवासियों को नहीं है ही नहीं पूरी दुनिया को भी मिलेगा । इसके पीछे पहला और अंतिम कारण है केंद्र में बीजेपी-दो सरकार के द्वारा लाए गए 3 नए कृषि कानून और बिजली अध्यादेश । यही कृषि कानून किसानों को मंजूर नहीं । हालांकि इस मुद्दे को लेकर 12 दौर की बातचीत के बाद अब वह समय भी सामने आया की तारीख पर तारीख के बाद अब तारीख के लिए तारीख ही नहीं बची ।

बहरहाल कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा आरंभ किया गया किसान आंदोलन , अब जन आंदोलन बनकर गणतंत्र दिवस के मौके पर हिंदुस्तान के दिल दिल्ली में प्रवेश कर चुका है। सही मायने में वर्ष 2021 का गणतंत्र दिवस देश और दुनिया के इतिहास में दर्ज होने जा रहा है , जिस की पुनरावृति शायद ही हो सकेगी । एक तरफ राजपथ पर वह जवान परेड करेंगे जो कि जान की परवाह किए बिना देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं , वहीं दूसरी तरफ पूरे देश का पेट भरने के लिए किसी भी प्रकार के मौसम की परवाह किए बिना खलिहान में डटा रहने वाला किसान भी ट्रैक्टर परेड करता दिखेगा। संभवत यह पहला मौका है जब पूरे देश के अन्नदाता किसान की भागीदारी पहली बार अपने हक हकूक के लिए अहिंसात्मक आंदोलन से गुजरते हुए ट्रैक्टर परेड के रूप में दिल्ली में प्रवेश करेंगी। एक अनुमान के मुताबिक और आंदोलनकारी किसान नेताओं के दावे के अनुसार दो लाख से अधिक ट्रैक्टर किसान ट्रैक्टर परेड में शामिल रहेंगे । इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के कृषि बिलों के विरोध में देशभर के विभिन्न राज्य और जिला मुख्यालय पर भी किसानों के द्वारा दिल्ली की तर्ज पर ही ट्रैक्टर परेड की जाएगी । एक अनुमान के मुताबिक ट्रैक्टर परेड में 15-20 लाख अन्नदाता किसान के मौजूद रहने की संभावना है । जिसमें बहुत बड़ी संख्या देश की आधी आबादी कहीं जाने वाली महिला वर्ग की भी शामिल रहेगी।

किसान नेताओं की मानें तो किसानों की ट्रैक्टर परेड हिंदुस्तान के दिल दिल्ली के पांच बॉर्डर के अलावा दिल्ली के बाहर विभिन्न राज्यों के चार बॉर्डर से भी की जाएगी । अब यह बात सबसे अधिक रोचक और देखने वाली रहेगी कि राजपथ की परेड या फिर किसान ट्रैक्टर परेड को देश और दुनिया का मीडिया कितनी अधिक तवज्जो देते हुए फुटेज भी देगा। राजपथ पर इस बार कोरोना प्रोटोकॉल को देखते हुए गणतंत्र दिवस आयोजन सहित परेड को संक्षिप्त अथवा सीमित दायरे तक रखा गया है । वही किसान परेड की बात की जाए तो यह परेड जिन विभिन्न रूट अथवा मार्ग पर होनी तय है उसका दायरा करीब 200 किलोमीटर तक बैठता है । राजपथ पर जहां प्रत्येक राज्य की झांकियां वहां की उपलब्धि और संस्कृति को प्रदर्शित करेंगी , इसके साथ ही देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए तमाम आधुनिक सैन्य साजो सामान का भी प्रदर्शन किया जाएगा।  इसके विपरीत आंदोलनकारी किसान नेताओं के दावे के मुताबिक ट्रैक्टर परेड में केवल उन्हीं ट्रैक्टरों को ट्रालियां लाने की मंजूरी प्रदान होगी, जिन ट्रालियां में किसानों के द्वारा झांकियां बनाई गई हैं। किसान नेताओं के दावे के अनुसार किसानों के ट्रैक्टर परेड में शामिल झांकियां कृषि किसान और किसानों की दुर्दशा को समझाने के लिए पर्याप्त होंगी। लेकिन इतना तय है कि जैसे दावे किए जा रहे हैं जिस संख्या में किसान परेड में ट्रैक्टर शामिल होंगे वह अपने आप में एक इतिहास के साथ-साथ रिकॉर्ड भी होगा । इस बात से कतई भी इनकार नहीं की जिस देश के अनेक ऐसे इलाके हैं जहां लोगों ने अभी तक अपनी आंखों से रेल नहीं देखी है । संभवत वर्ष 2021 का 26 जनवरी का दिन भी ऐसा ही दिन होगा जब दिल्ली के बहुत से लोग विशेष रूप से युवा वर्ग और छोटे बच्चे अपनी आंखों से सड़कों पर दौड़ता हुआ तिरंगे झंडे से सजा ट्रैक्टर भी देख सकेंगे । इसी बीच आंदोलनकारी अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा की गई घोषणा कि ट्रैक्टर परेड में शामिल होने वाले ट्रैक्टर अपने परेेड आरंभ करने वाले स्थान पर लौटकर वहीं पर ही 27 को भी परेड कर सकते हैं और उसके बाद इन ट्रैक्टरों का पडाव भी परेड आरंभ वाले स्थान पर ही रहेगा ।

आंदोलनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने यह भी ऐलान डंके की चोट पर कर दिया है कि 1 फरवरी को किसानों के द्वारा संसद तक मार्च किया जाएगा । इसका भी वही एक मकसद है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए अथवा लागू किए गए कृषि कानूनों को वापस लिया जाना । अब यह भविष्य के गर्भ में है कि कृषि कानूनों के मुद्दे को लेकर आंदोलनकारी किसान संगठनों या फिर केंद्र सरकार के मंत्रियों सहित रणनीतिकारों में से किस पक्ष की चाणक्य नीति अधिक सटीक और कारगर साबित हो सकेगी ?  बहरहाल यह गर्व का विषय है कि राजपथ पर भी जवानों के हाथ में तिरंगा होगा और ट्रैक्टर पिरेड में शामिल किसान के हाथों में भी तिरंगा ही होगा । अर्थात तिरंगे के साथ एक तरफ जवान और दूसरी तरफ तिरंगे के साथ किसान होंगे , यही तिरंगा हिंदुस्तान की शान भी है । लेकिन इतना तय है कि पूर्व घोषणा के मुताबिक आंदोलनकारी किसान कृषि कानून केंद्र सरकार द्वारा रद्द अथवा वापस लिए जाने तक अपना आंदोलन समाप्त करने के मूड में नहीं है, नहीं उनके ऐसे कोई इरादे दिखाई दे रहे हैं।

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