किसानों के नाम पर उपद्रवी कांग्रेसी और वामपंथी
देश के लोकतंत्र को दंगे की आड़ में कमजोर करने का प्रयास
दिल्ली घटना के जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही हो
ऐसे राष्ट्र विरोधी तथाकथित किसानों को कतई नहीं बख्शे
फतह सिंह उजाला
पटौदी। आंदोंलनकारी किसान और किसान संगठनों के नेताओं ने पुलिस से वायदा किया था कि तय रूट पर जाऐंगे, शान्ती से परेड करेंगे परन्तु । पुलिस एवं मीडिया तथा सरकारी सम्पत्ति पर हमला किया । ऐसे लोगो की जिम्मेवारी लेने वाले नेताओं के खिलाफ भी षडयंत्र रचने की कार्यवाही की जानी चाहिए। यह तीखी प्रतिक्रिया भाजपा के पूर्व प्रदेश सह प्रवक्ता और पटौदी के एमएलए एडवोकेट एसपी जरावता ने दिल्ली हिंसा पर चिंता जाहिर करते व्यक्त की है। मंगलवार 26 जनवरी की इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है। दिल्ली पुलिस की सहनशीलता को बधाई देते कहा कि उन्होंने परिस्थिति को बड़ी शांति पूर्वक और संयम से संभाला ।
जहां सरकार ने किसान नेताओं की बात को बड़ा करते हुए दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की इजाजत दी, वहीं गणतंत्र दिवस का दिन भारत के इतिहास में दुर्भाग्यपूर्ण दिवस के रूप में याद किया जाएगा। कानून काले नहीं , बल्कि कानूनों पर हो रही राजनीति काली है। जहां इन किसान नेताओं ने सरकार को बार-बार आश्वासन दिया कि ट्रैक्टर रैली निकालने कि उनको इजाजत दी जाए और वह यह सुनिश्चित करेंगे कि यह ट्रैक्टर रैली शांतिपूर्ण और कानून के दायरे में रहेगी। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह कहीं भी दिखाई नहीं दीये और दिल्ली की सड़कों पर कानून और संविधान दोनों को कुचलने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा आज हर हिंदुस्तानी का खून खोल रहा है। सवाल बहुत अहम और बड़ा है ? क्या किसान के नाम पर हो रही गुंडागर्दी बर्दाश्त करी जाएगी ? क्या अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने आप इस विषय का संज्ञान लेते हुए इन कथित नेताओं और उनके द्वारा छोड़े गए गुंडे अभिनेताओं को कानून का सबक सिखाएगा ? केंद्र सरकार ने हर संभव कोशिश कर यह आश्वासन दिया कि एमएसपी उसी प्रकार चलती रहेगी , जो बदलाव सुझाए जाएंगे उस पर काम किया जाएगा । यहां तक की इन कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने का भी प्रस्ताव दिया । लेकिन मंशा कृषि कानून की नहीं, मंशा देश का मान सम्मान धूमिल करना और अपनी राजनीति को स्थापित करना था।
सरकार ने देश के सामने बार-बार यह जताया कि इस कथित किसान आंदोलन की आड़ में सिर्फ देश विरोधी गतिविधियां की जाएंगी। इसमें माओवादी और नक्सली अपने कार्यक्रम को अंजाम देंगे और जो विदेशी ताकतें पाकिस्तान के दिए हुए एजेंडे को चलाना चाहते हैं , वह इसका पूरा उपयोग करेंगे। इन बातों का किसान नेताओं ने बार-बार खंडन किया। लेकिन आज वह खंडन करने वाले गायब हो गए हैं। जिस प्रकार से दिल्ली के अंदर तलवारों का प्रदर्शन किया गया। जिस प्रकार खतरनाक तरीके से सुरक्षाकर्मियों के ऊपर 26 जनवरी वाले दिन ट्रैक्टरों को चलाया गया। जिस प्रकार इस पूरे प्रकरण को आज अंजाम दिया गया , वह यही दिखाता है कि इन नेताओं की मंशा किसानों का हित नहीं बल्कि देश का अहित और अपनी राजनीति चमकाना था। इन सभी अराजक तत्वों ने गणतंत्र दिवस के दिन राष्ट्रध्वज की आड़ में राष्ट्र और राष्ट्रध्वज दोनों को शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां सुरक्षाकर्मियों ने राष्ट्रध्वज का सम्मान करते हुए बड़े संयम से काम लिया । वही यह लोग और इनके गायब नेता यह भूल गए की सुरक्षा कर्मियों की वर्दी पर भारत सरकार का जो चिन्ह वह भी इसी गणतंत्र की पहचान है, जिस पर इन लोगों ने हमले किये।
देश के लोकतंत्र को दंगे की आड़ में कमजोर करने का प्रयास
दिल्ली घटना के जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही हो
ऐसे राष्ट्र विरोधी तथाकथित किसानों को कतई नहीं बख्शे
फतह सिंह उजाला
पटौदी। आंदोंलनकारी किसान और किसान संगठनों के नेताओं ने पुलिस से वायदा किया था कि तय रूट पर जाऐंगे, शान्ती से परेड करेंगे परन्तु । पुलिस एवं मीडिया तथा सरकारी सम्पत्ति पर हमला किया । ऐसे लोगो की जिम्मेवारी लेने वाले नेताओं के खिलाफ भी षडयंत्र रचने की कार्यवाही की जानी चाहिए। यह तीखी प्रतिक्रिया भाजपा के पूर्व प्रदेश सह प्रवक्ता और पटौदी के एमएलए एडवोकेट एसपी जरावता ने दिल्ली हिंसा पर चिंता जाहिर करते व्यक्त की है। मंगलवार 26 जनवरी की इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है। दिल्ली पुलिस की सहनशीलता को बधाई देते कहा कि उन्होंने परिस्थिति को बड़ी शांति पूर्वक और संयम से संभाला ।
जहां सरकार ने किसान नेताओं की बात को बड़ा करते हुए दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की इजाजत दी, वहीं गणतंत्र दिवस का दिन भारत के इतिहास में दुर्भाग्यपूर्ण दिवस के रूप में याद किया जाएगा। कानून काले नहीं , बल्कि कानूनों पर हो रही राजनीति काली है। जहां इन किसान नेताओं ने सरकार को बार-बार आश्वासन दिया कि ट्रैक्टर रैली निकालने कि उनको इजाजत दी जाए और वह यह सुनिश्चित करेंगे कि यह ट्रैक्टर रैली शांतिपूर्ण और कानून के दायरे में रहेगी। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह कहीं भी दिखाई नहीं दीये और दिल्ली की सड़कों पर कानून और संविधान दोनों को कुचलने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा आज हर हिंदुस्तानी का खून खोल रहा है। सवाल बहुत अहम और बड़ा है ? क्या किसान के नाम पर हो रही गुंडागर्दी बर्दाश्त करी जाएगी ? क्या अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने आप इस विषय का संज्ञान लेते हुए इन कथित नेताओं और उनके द्वारा छोड़े गए गुंडे अभिनेताओं को कानून का सबक सिखाएगा ? केंद्र सरकार ने हर संभव कोशिश कर यह आश्वासन दिया कि एमएसपी उसी प्रकार चलती रहेगी , जो बदलाव सुझाए जाएंगे उस पर काम किया जाएगा । यहां तक की इन कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने का भी प्रस्ताव दिया । लेकिन मंशा कृषि कानून की नहीं, मंशा देश का मान सम्मान धूमिल करना और अपनी राजनीति को स्थापित करना था।
सरकार ने देश के सामने बार-बार यह जताया कि इस कथित किसान आंदोलन की आड़ में सिर्फ देश विरोधी गतिविधियां की जाएंगी। इसमें माओवादी और नक्सली अपने कार्यक्रम को अंजाम देंगे और जो विदेशी ताकतें पाकिस्तान के दिए हुए एजेंडे को चलाना चाहते हैं , वह इसका पूरा उपयोग करेंगे। इन बातों का किसान नेताओं ने बार-बार खंडन किया। लेकिन आज वह खंडन करने वाले गायब हो गए हैं। जिस प्रकार से दिल्ली के अंदर तलवारों का प्रदर्शन किया गया। जिस प्रकार खतरनाक तरीके से सुरक्षाकर्मियों के ऊपर 26 जनवरी वाले दिन ट्रैक्टरों को चलाया गया। जिस प्रकार इस पूरे प्रकरण को आज अंजाम दिया गया , वह यही दिखाता है कि इन नेताओं की मंशा किसानों का हित नहीं बल्कि देश का अहित और अपनी राजनीति चमकाना था। इन सभी अराजक तत्वों ने गणतंत्र दिवस के दिन राष्ट्रध्वज की आड़ में राष्ट्र और राष्ट्रध्वज दोनों को शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां सुरक्षाकर्मियों ने राष्ट्रध्वज का सम्मान करते हुए बड़े संयम से काम लिया । वही यह लोग और इनके गायब नेता यह भूल गए की सुरक्षा कर्मियों की वर्दी पर भारत सरकार का जो चिन्ह वह भी इसी गणतंत्र की पहचान है, जिस पर इन लोगों ने हमले किये।