अजय सागर अत्री
रेवाड़ी। इन्दिरा गांधी विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, छात्र कल्याण व हिन्दी विभाग के तत्वाधान में हिन्दी पखवाड़े के अवसर पर ‘कर्म सिद्वान्त परिचयः कारण एवं प्रभाव’ विषय पर एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन ऑन लाईन माध्यम से किया गया। सर्वप्रथम कुलपति महोदय प्रो. एस.के.गक्खड़ ने कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता प्रो. राजेन्द्र कुमार अनायथ, कुलपति दीनबंधु छोटूराम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल, सोनीपत का स्वागत करते हुए कहा कि हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के नाते सर्वाधिक महत्व दिया जाना चाहिए और हमें अपनी मातृभाषा को बोलते समय शर्म की बजाय गर्व की अनुभूति होनी चाहिए।

इस कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता प्रो. राजेन्द्र कुमार अनायथ ने अपनी धर्मपत्नी रजनी अनायथ परिवार सहित गीता मंत्र के साथ शुरूआत और कहा कि सफलता का कोई शार्टकट नहीं, कर्म की श्रेष्ठता ही हमारी पहचान स्थापित करती है। भाषायी दीवारों को तोड़ते हुए प्रो. अनायथ ने दक्षिण भारतीय होते हुए हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ‘कर्म-योग’ के महत्व को समझाया। भाषा राष्ट्र की एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाती है।
गीता मेें उद्यृत कर्मयोग की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि - मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए अटल संकल्प, दृढ़ आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते जाए। कभी मत कहो, मैं नही कर सकता, जीवन मैं असंभव कुछ भी नही, सभी शक्तियॉं आपके अन्दर विद्यमान है। युद्धभूमि मंे किंकर्तव्यविमूढ़ बैठे अर्जुन को कृष्ण का कर्मयोग संदेश जीवन में शांति और आनंद की प्राप्ति कराता है। हमारे श्रेष्ठ कर्म ही हमारी पहचान है। ‘कर्म ही पूजा’ की चिन्तन धारा को जीवन में धारण करना चाहिए।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. एस.के.गक्खड़ ने सभी शिक्षकों और इस कार्यक्रम के सफल बनाने के लिए आयोजक टीम डॉ. अदिति शर्मा, डॉ. सीमा महलावत, डॉ. रीना हुड्डा, डॉ. विजय हुड्डा और सुशान्त यादव सहित पूरी टीम को बधाई दी।

कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद प्रस्ताव हिन्दी विभागाध्यक्षा प्रो. रोमिका बत्रा ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का मंच संचालन डॉ. जागीर नागर ने किया। इस कार्यक्रम मंे विश्वविद्यालय के शिक्षक व कर्मचारी उपस्थित रहे।
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