30 लाख की लागत से शुरू होगा प्रोजेक्ट, 3 माह में काम होगा शुरू।

मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार
कोरोना संकट के रोकथाम व बचाव के लिए सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन ने पूरी दुनिया को दिखा दिया था कि इंडस्ट्री व वाहनों का चक्का जाम होने से प्रदूषण कम हो गया था। नदियों का पानी व हवा बिल्कुल साफ हो गई थी। पूरे साल फ़ैक्टरियों के ज़हरीले केमिकल से लबालब रहने वाली यमुना एक साफ हो गई थी व पंजाब से हिमालय की पहाड़ियां दूर से नज़र आने लगी थी। इसमे कोई दोराय नही है कि बढ़ते प्रदूषण की वजह हमारी प्रकृति से बढ़ती अनावश्यक जरूरतें व जीवाश्म ईंधन का कोई विकल्प नही होना है। लेकिन धीरे धीरे हम विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं इसी कड़ी में हरियाणा सरकार ने चीनी बनाने वाली सहकारी कम्पनियों की आय बढ़ाने व उनकी माली हालात ठीक करने के लिए चीनी बनने के बाद उसकी बची हुई खोई से बायोफ्यूल ईंट बनाने का फैसला किया है। ये बीओफ्यूएल ईंटें सस्ता व नेचर फ़्रेंडली है जिसकी औद्योगिक इकाइयों में बहुत ज्यादा डिमांड है। 

कैथल में लगेगा पायलट प्रोजेक्ट।

देशभर में बीओफ्यूएल ईंटों का इस्तेमाल काफ़ी मात्रा में किया जाता है क्योंकि ये सस्ता व प्रदूषण रहित भी है। इसी को देखते हुए प्रदेश सरकार ने कैथल में पहला बीओफ्यूएल ब्रिक्स प्लांट लगाने का फैसला किया है। सरकार को उम्मीद है है ये प्रोजेक्ट सिरे चढ़ा तो इससे चीनी मिलों को की माली हालात सुधर जाएगी व प्रदूषण का स्तर भी काफी कम होगा। 

30 लाख की मशीनरी सेटअप से शुरुआत होगी।

कैथल में प्रोजेक्ट के लिए 30 लाख की मशीनरी का सेटअप होगा जिससे गन्ने की बची हुई खोई को हाइड्रोलिक प्रेशर से ईंटों में तब्दील किया जाएगा। प्रोजेक्ट 3 महीने में काम करना शुरू कर देगा। विशेषज्ञों ने बताया कि गन्ने की पिटाई करने के बाद रस निकाल कर उससे चीनी को बनाया जाता है, बाद में गन्ने की खोई रह जाती है जोकि आजकल ईंधन के रूप में बहुत प्रचलित है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) व प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की सख़्त गाइडलाइंस के कारण भी उद्योग बीओफ्यूएल ईंटों को पारंपरिक ईंधन जैसे कि कोयला व अन्य ईंधनों के विकल्प के रूप में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं जोकि सस्ता व पर्यावरण फ़्रेंडली है। सरकार को उम्मीद है कि कैथल पायलट प्रोजेक्ट के सफल होने पर इसे प्रदेश की सभी चीनी मिलों में लागू किया जाएगा।

क्या है बीओफ्यूएल ब्रिक्स।

कृषि अवशिष्ट जैसे कि घास, गेहूं की पराली, गन्ने की खोई को प्रेसर से सॉलिड बनाकर पारंपरिक ईंधन के तौर पर उद्योगों में इस्तेमाल किया जा रहा है। ये बीओफ्यूएल ईंटें कई आकृतियों में ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है और इनकी काफ़ी डिमांड भी है। ये वजन में हल्की व सस्ती हैं जोकि धीरे-धीरे जलती हैं जिससे लगातार हीट मिलती रहती है।

हरियाणा में चीनी मिलें 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने की खोई बेच रही हैं यदि इसे बीओफ्यूएल ईंटों के रूप।में बेचा जाएगा तो 30 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम बिक सकती हैं जिससे सहकारी चीनी मिलों को काफ़ी मुनाफ़ा हो सकता है।

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