कृषि अवशेष प्रबंधन स्कीम के तहत किसान को व्यक्तिगत तौर पर 50 फ़ीसदी व कस्टम हायरिंग सेन्टर को 80 फ़ीसदी सब्सिडी निर्धारित की गई है।


मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार

हिसार कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा एनजीटी(नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के निर्देशानुसार फसल अवशेष प्रबंधन स्कीम 2020-21 का ऐलान किया है जिसके तहत फसल अवशेषों को खेत में मिलाने व अन्य प्रबंधन के लिए किसानों को सब्सिडी मुहैया करवाई जाएगी।

उपायुक्त डॉ प्रियंका सोनी ने बताया कि स्कीम के तहत व्यक्तिगत तौर पर मशीनरी खरीदने पर 50 फ़ीसदी व कस्टम हायरिंग सेन्टर स्थापित करने पर 80 फ़ीसदी सब्सिडी दी जाएगी। उन्होंने बताया कि जमीन की उर्वरक क्षमता बनाए रखने व वायु प्रदूषण को कम करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा फसल अवशेषों खासकर धान के अवशेषों को खेत में या खेत से बाहर मशीनों द्वारा प्रबंधन के लिए किसानों को सब्सिडी दी जाएगी। 

9 प्रकार के कृषि यंत्र दिए जाएंगे। 

उपायुक्त ने कहा कि कृषि अवशेष प्रबंधन के लिए 9 प्रकार के कृषि यंत्रों की सुविधा दी जाएगी। उन्होंने बताया कि सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट(एसएसएम) जोकि लक्ष्य के तहत सामान्य वर्ग( सभी वर्गों के लिए) को 4 यंत्र व अनुसूचित जाति के लिए 1 यंत्र रखा गया है। हैप्पी सीडर( लक्ष्य सामान्य 04 एवं अनुसूचित जाति 01), पैडी स्ट्रा चौपर( लक्ष्य सामान्य 08 एवं अनुसूचित जाति 01), कोप रीपर( ट्रैक्टर चालित, स्वचालित) लक्ष्य सामान्य 08 एवं अनुसूचित जाति 01, रिवर्सिबल एमबी प्लाउ( लक्ष्य सामान्य 02), जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल मशीन(लक्ष्य सामान्य वर्ग 31 एवं अनुसूचित जाति 05), सुपर सीडर( लक्ष्य 04 एवं अनुसूचित जाति 01), बेलिंग मशीन(लक्ष्य सामान्य 20 एवं 06), शर्ब मास्टर/स्लेशर( सामान्य 20 एवं अनुसूचित जाति 05) कृषि यंत्रों को दिया जाएगा। स्कीम के तहत एक किसान अधिकतम तीन मशीन ले सकता है।

लक्ष्यों से अधिक आवेदन प्राप्त होने पर ड्रा निकाला जाएगा।

स्कीम का फ़ायदा उन किसानों को मिल सकता है जिसने 2 साल में उपरोक्त मशीन पर किसी भी स्किम के तहत सब्सिडी नही ली हो, ट्रैक्टर चालित मशीनों के लिए हरियाणा सरकार में आरसी( रेजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) का पंजीकरण अनिवार्य है। किसान का "मेरी फ़सल, मेरा ब्यौरा" पर पंजीकरण होना चाहिए। इसके साथ ही उपयुक्त महोदया ने बताया कि लक्ष्य से अधिक आवदेन प्राप्त होने पर ड्रा विधि से जिला स्तरीय कार्यकारी कमेटी द्वारा चयन किया जाएगा।

जिन गांवों में आगजनी ज्यादा है उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी।

उपायुक्त डॉ प्रियंका सोनी ने बताया कि हिसार जिले में कस्टम हायरिंग सेन्टर के लिए सामान्य लक्ष्य 25 व अनुसूचित जाति के लिए 6 लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं जिस पर 80 फ़ीसदी सब्सिडी दी जाएगी। कस्टम हायरिंग सेन्टर के पंजीकरण के लिए पंजीकृत किसान समिति, एफ़पीओ(किसान उत्पादक संगठन), किसानों के सहकारी समितियां एवं पंचायत आवेदन दे सकती हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया की कस्टम हायरिंग सेन्टर क्लस्टर के अनुसार स्थापित किए जाएंगे। जिन गांवों में आगजनी ज्यादा है उन्हें स्कीम के तहत प्राथमिकता दी जाएगी।

किसान अपनी पसंद की निर्माता कम्पनी से यंत्र खरीद सकते हैं जो हरियाणा सरकार की अनुमोदित सूची में हो।

कस्टम हायरिंग सेन्टर पर 5 लाख से 25 लाख रुपये तक की कीमत का प्रोजेक्ट ले सकते हैं जिसमे कम से कम 35 फ़ीसदी कृषि यंत्र/मशीन फ़सल अवशेष प्रबंधन उपरोक्त 9 मशीनों में से खरीदना अनिवार्य है। उन्होंने बताया की किसान उपरोक्त 9 मशीनों के अलावा भी मशीन खरीद सकते हैं। किसान अपनी पसंद के निर्माता कम्पनी से कृषि यंत्र खरीद सकते हैं जोकि हरियाणा सरकार की अनुमोदित सूची में हो।
आवेदन करने के लिए किसान दिनांक 21 अगस्त, 2020 तक www.agriharyanacrm.com पर अपना आवेदन दे सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए उप कृषि निदेशक, हिसार/सहायक कृषि अभियंता, हिसार कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।

क्या है कृषि अवशेष प्रबंधन व क्यों है जरूरी।

किसानों में जागरूकता की कमी व सरकार द्वारा सुविधाओं की कमी के चलते हर साल अक्टूबर-नवम्बर के महीने में किसान हर साल किसान धान की कटाई के बाद पराली(कृषि अवशेष) जलाते हैं ताकि अगली फ़सल के लिए भूमि को तैयार किया जा सके। जिसकी वजह से दिल्ली व एनसीआर में वायु प्रदूषण अपने चरम पर होता है जिससे आसमान राख के कणों से ढक जाता है। जिससे दिल्ली व एनसीआर में गंभीर बीमारियां का ख़तरा बना रहता है। पराली जलाने से उठे धुंए व राख़ से लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती है व फेफड़ों में कैंसर तक के जोख़िम बने रहते हैं।


एक सर्वे के अनुसार एक टन पराली जलाने पर 2 किलो सल्फर डाइऑक्साइड, 3 किलो पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलो कार्बन मोनोक्साइड,1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड व 199 किलो राख़ पैदा होती है जिससे हवा ज़हरीली हो जाती है जिससे सांस की गंभीर बीमारियां होती हैं। इसके साथ ही एक टन धान के अवशेष जलाने पर नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फॉस्फोरस डाइऑक्साइड, पोटैशियम ऑक्साइड, सल्फर व मीथेन जैसी जहरीली गैसें हवा में घुलती हैं।


एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा व पंजाब में हर साल सर्दियों में 35 मिलियन टन पराली जलाई जाती है।

इन सभी खतरों से बचने के लिए एनजीटी ने हरियाणा व पंजाब सरकार को किसानों को जागरूक करने व कृषि अवशेष को खेत में या खेत से बाहर प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रों को खरीदने में सब्सिडी मुहैया करवाने के निर्देश दिए थे ताकि धान की खेती से गेंहू की खेती ने जाने के लिए 20-25 दिनों में किसान कृषि अवशेष को निपटाकर जमीन को तैयार कर सके।

हवा के साथ-साथ उपजाऊ खेती के लिए भी हानिकारक है पराली को जलाना।

सेन्टर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के सीनियर रिसर्चर पोलाश मुखर्जी ने बताया कि कृषि अवशेष जलाने से जमीन में मौजूद खनिज लवण, मिट्टी की उर्वकर क्षमता, व अन्य गुण जैसे नमी, तापमान, मिट्टी में मौजूद आवश्यक फॉस्फोरस, नाइट्रोजन व सूक्ष्म जीव, केंचुए आदि को भारी नुकसान होता है जिससे पैदावार कम होती है।

सर्दियों में होता है ज्यादा प्रदूषण।

भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के बाद अक्टूबर-नवंबर में उत्तर-पश्चिमी दिशा में शीत लहरे चलती हैं उसी दौरान पंजाब, हरियाणा व उत्तरप्रदेश में धान की खेती के बाद पराली जलाई जाती है जिससे पंजाब व हरियाणा में पराली का धुआं दिल्ली व एनसीआर में जाता है और सर्दियों में तापमान में कमी होने की वजह से आसमान राख़ से ढक जाता है।


एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली में 12 फीसदी से 60 फ़ीसदी प्रदूषण हरियाणा व पंजाब में धान की खेती के बाद अवषेशों के जलाने से होता है।

Previous Post Next Post