प्रशांत भूषण पर बीते 27 जून को पिछले चार मुख्य न्यायधीशों की आलोचना करने के चलते कोर्ट की अवमानना का केस चल रहा है।

मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार
देश के जाने माने वकील व सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट के चलते सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय की अवमानना का दोषी क़रार दिया है। 
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने अपना फ़ैसला पढ़ते हुए कहा कि प्रशांत भूषण ने गंभीर रूप से न्यायालय की अवमानना की है। अब 20 अगस्त को अगली सुनवाई में पीठ सजा पर सुनवाई करेगी।


बता दें कि प्रशांत भूषण ने चीफ़ जस्टिस एसएस बोबडे व सुप्रीम कोर्ट को लेकर 2 ट्वीट किए थे जिसपर कोर्ट की अवमानना के तहत सुनवाई चल रही है। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की सविंधानिक पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद बीते 5 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
प्रशांत भूषण की ओर से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने सफाई पेश करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ न्यायपालिका की सामान्य आलोचना की थी और ये किसी दुर्भावना से प्रभावित नहीं था। दवे ने कहा कि न्यायपालिका के कामकाज में कई सारी कमियां हैं, जिसके कारण प्रशांत भूषण ने आलोचना की थी।

न्यायधीशों की आलोचना करना न्यायालय की आलोचना करना नही है।

प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल किए अपने हलफनामे में कहा कि सीजेआई या सीजेआई के उत्तराधिकारियों के कार्यों की आलोचना करना व इस मामले में यह तर्क देना की सीजीआई ही सुप्रीम कोर्ट है या सुप्रीम कोर्ट ही सीजेआई है, भारत के सर्वोच्च न्यायालय को कमज़ोर करना है।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एसएस बोबडे की सुपरबाइक हार्ले डेविडसन पर फ़ोटो को लेकर ट्वीट पर उन्होंने कहा कि उनका ट्वीट पिछले तीन महीनों से अधिक समय तक होने वाली पीड़ा को रेखांकित करता है, नागरिक में मौलिक अधिकारों के तहत देश में डिटेंशन कैम्प में बंद, पीड़ित व गरीब व अन्य जो गंभीर समस्या से गुजर रहे हैं, को लेकर कोई सुनवाई नही हुई।

अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता और आलोचना के अधिकार में न्यायालयपालिका की आलोचना भी शामिल है।

हलफनामे में आगे कहा गया है कि भारत के पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों के बारे में भूषण का ट्वीट उनके बारे में उनका वास्तविक प्रभाव था और यह उनका विचार है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को नष्ट करने की अनुमति दी और इस तरह की अभिव्यक्ति को अवमानना नहीं माना जा सकता है।

प्रशांत भूषण की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है,"मैंने जो कुछ भी ट्वीट किए हैं,वे पिछले वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज के तरिके को लेकर मेरी वास्तविक राय है और मुख्य रूप से पिछले 4 मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका के बारे में हैं। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका की शक्तियों पर अंकुश लगाने व सर्वोच्च न्यायालय के पारदर्शी व जवाबदेह तरीके से कार्य करने को सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका मुझे यह कहने पर विवश करती है कि उन्होंने लोकतंत्र को कमज़ोर करने में भूमिका निभाई है।

उन्होंने आगे कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आलोचना के अधिकार के तहत न्यायपालिका की निष्पक्ष व मजबूत आलोचना करना भी शामिल है।

बता दें कि 27 जून को प्रशांत भूषण द्वारा एक ट्वीट में 
बता दें कि 27 जून को एक ट्वीट करते हुए भूषण ने पिछले छह सालों में औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायधीश, जस्टिस एसएस बोबडे, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जेएस खेहर की भूमिका की आलोचनान की थी।

क्या होती है कोर्ट की अवमानना।

न्यायालय अवमानना एक्ट 1971, के तहत न्यायालय की प्रतिष्ठा या उसके अधिकारों के प्रति असम्मान प्रकट करना अपराध है।

इस अधिनियम को सिविल व आपराधिक, दो भागों में बांटा गया है। सिविल अवमानना के तहत किसी रीट,डिक्री या आदेश का जानबूझकर उल्लंघन करना शामिल है व आपराधिक अवमानना के तहत न्यायालय से जुड़ी किसी ऐसी बात के प्रकाशन से है जोकि लिखित, मौखिक, चिह्नित या चित्रित सामग्री से है जिससे कोर्ट की अवमानना होती हो।

सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय कोर्ट को अवमानना को लेकर सजा सुनाने का अधिकार प्राप्त है। जिसके तहत 6 महीने का कारावास या 2 हज़ार रुपये जुर्माना या दोनों एक साथ हो सकते हैं।

न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 10 के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायलयों को भी अवमानना के लिए दंडित करने का विशेष अधिकार प्राप्त है।

सविंधान में कोर्ट की अवमानना को लेकर तीन अनुच्छेद दिए गए हैं।

अनुच्छेद 129: सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अनुच्छेद 129 के तहत दोषी करार दिया है। अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना को दंडित करने की शक्ति देता है।

अनुच्छेद 142(2): यह अनुच्छेद न्यायालय को किसी भी व्यक्ति की जांच व उसे दंडित करने की शक्ति देता है।

अनुच्छेद 215: यह अनुच्छेद देश की उच्च न्यायालयों को स्वयं की अवमानना के लिए किसी को दंडित करने की शक्ति देता है।

न्यायालय की अवमानना एक्ट, 1971 सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों की गरिमा व प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए है।l

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