ईद उल अजहा के मौके पर सूनी रही ईदगाह और मस्जिदें

अपने घरों में ही अता की गई ईद उल अजहा की नमाज

कोरोना कोविड-19 के कारण सरकारी आदेशों का पालन

फतह सिंह उजाला
पटौदी।
रमजान माह में भी यही हालात रहे और अब भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया। कारण है कोरोना कोविड-19 महामारी का अभी भी पूरी तरह से काबू में नहीं आना। रमजान के बाद इन दिनों में मुस्लिम वर्ग के अलावा हिंदू वर्ग व अन्य वर्ग के विभिन्न प्रकार के त्योहार का समय चल रहा है । सावन का महीना है , अनेक अनेक लोग सावन माह के दौरान भगवान शिव का जलाभिषेक-रुद्राभिषेक करते हैं। लेकिन सरकार के निर्देश मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा सभी के लिए एक जैसे ही निर्देश जारी किए हुए हैं ।

शनिवार को मुस्लिम समाज का रमजान के बाद एक और बड़ा त्योहार आया,  ईद उल अजहा । इसका सीधा-सीधा भावार्थ है कुर्बानी । कुर्बानी की व्याख्या भी अलग-अलग है और आज के हालात में अपनी भावनाओं को काबू में करके जो कुर्बानी हिंदू , मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी वर्गों के द्वारा दी जा रही है वह अपने आप में अखंड भारत का प्रतीक बन गई है । शनिवार को ईद उल अजहा के मौके पर पटौदी क्षेत्र में सभी मस्जिदें बंद रही। मस्जिद चाहे इब्राहिम मुसाजिद हो, जामा मस्जिद हो और व्यापारियान मस्जिद हो, जाल वाली मस्जिद हो या फिर ईदगाह ही क्यों ना हो । मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शनिवार को अलसुबह 6. 30 बजे अपने अपने घरों में ही नमाज अदा की।  सीधे और सरल शब्दों में घर ही इबादत गाह बन गए।

पंडित कैलाश चंद्र वाली पालम वाले के शिष्य सैयद एजाज हुसैन जैदी जज्जू बाबा ने इस मौके पर कहा कि पटौदी का एक इतिहास रहा है 36 बिरादरी के लोग कोई भी त्यौहार हो आपस में मिलकर मनाते आ रहे हैं।  त्योहार भी मनाया गया , लेकिन वह खुशी नहीं रही जो की होनी चाहिए । इसका एक ही कारण है कि कोरोना कॉविड 19 महामारी और इस दौरान लंबे समय तक चले लॉकडाउन की वजह से मंदी का बना रहना भी एक बहुत बड़ा कारण रहा । उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा कुर्बानी का मतलब यही है की हम समाज के किसी भी व्यक्ति के लिए काम आ सके अपनी इच्छाओं को मार सके अपनी जरूरतों को कम करके किसी जरूरतमंद की मदद करें यही कुर्बानी आज के माहौल में कहलाना सबसे अधिक बेहतर हो सकता है ।

पूर्व पार्षद नंबरदार अब्दुल जलील ने भी कहा की लोक डाउन की वजह से सभी त्योहारों की रौनक और आम लोगों की खुशी पर गहरा प्रभाव पड़ा है। पटौदी का आजादी से पहले और आजादी के बाद का एक अपना ही इतिहास रहा है । अटूट भाईचारा है, आज तक किसी भी प्रकार का कोई विवाद नहीं हुआ है। लेकिन मन में कहीं ना कहीं पीड़ा तो रहती है कि जब 36 बिरादरी के मित्र , जानकार मिलकर कोई भी त्यौहार मनाते आ रहे हैं और ऐसा भी मौका है जिस पर चाह कर अपने मित्रों को यार दोस्तों को सगे संबंधियों को नही बुला सके और खुशियां  भी ना बांट सके, तो मन में पीड़ा होना स्वभाविक है। पूर्व पार्षद ब्रह्मदेव दोंचानिया ने भी कुछ यही कहा की जो खुशी होनी चाहिए समाज में उसका सीधा सीधा अभाव दिखाई दिया है ।

पटौदी पालिका के चेयरमैन चंद्रभान सहगल ने कहा कि पटौदी का भाईचारा अपने आप में बहुत बड़ी मिसाल और एक उदाहरण कायम किए हुए हैं। कोई भी त्यौहार हो, सभी वर्ग के लोग मिलकर मनाते हैं। शनिवार को और इससे पहले रमजान के दौरान 25 मई को , जो दो ईद के बड़े त्यौहार निकल गए वह उस खुशी से नहीं मनाए जा सके, जिसमें 36 बिरादरी के लोग मित्र और भाईचारा एक साथ बैठ सकते थे। बहरहाल हम सब का फर्ज यही बनता है कि जैसे भी हालात हैं ,उनसे समझौता करके ही उसी के अनुरूप अपने अपने तीज त्योहार को मनाया जाए । इसी में ही हमारी , समाज की और राष्ट्र की भलाई भी छिपी हुई है । पटौदी पालिका के पूर्व वाइस चेयरमैन राधेश्याम मक्कड़, पटौदी पालिका के ही मौजूदा वाइस चेयरमैन जर्मन सैनी सहित अन्य पार्षदों ने भी यही कहा कि समय सबसे बड़ा बलवान है । यह समय का ही खेल है कि आज मंदिर , मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर में चाह कर भी कोई भी वर्ग का व्यक्ति जिसकी जैसी आस्था है पूजा पाठ के लिए वह नहीं जा पा रहा है । लेकिन जो हालात बने हैं , हम लोगों को समाज को और समाज के सभी लोगों को उस बात को समझना होगा । जिसमें हम सभी की , समाज की और राष्ट्र की भलाई निहित है ।

कोई भी त्यौहार हो बच्चों का उत्साह अलग ही होता है । लेकिन बीते मार्च से लेकर अगस्त तक जो हालात बने हुए हैं, बच्चे जिन हालात में रह रहे हैं । बच्चों को भी बहुत कुछ समझ में आ चुका है और वह भी बहुत ही संयम के साथ बिना किसी जिद्द के त्योहार की खुशियां अपने ही अंदाज में बांट रहे हैं , साझा कर रहे हैं और हालात के मुताबिक ही त्योहार का आनंद भी ले रहे।


विशेष रूप से बनाई मीठी सेवइयां
गैर मुस्लिम और शाकाहारी मित्रों के लिए विशेष रूप से बनाई गई मीठी सेवइयां । पटौदी में हिंदू-मुस्लिम के अलावा अन्य धर्म वर्ग संप्रदाय के लोग त्योहारों को आपस में मिलकर मनाते आ रहे हैं । ईद उल फितर पर तो विशेष रूप से मीठी सेवइयां ही बनती हैं और शनिवार को भी ईद उल अजहा के मौके पर जहां मुस्लिम वर्ग कुर्बानी की रस्म को पूरा करते हुए स्वयं को कृतार्थ मानता है ,उस मुस्लिम वर्ग के लोगों के द्वारा भी गैर मुस्लिम मित्रों , परिचितों के लिए विभिन्न प्रकार के मेवा इत्यादि डालकर मीठी सेवइयां की खीर बनाई गई और मीठा मूंह करवाया गया।

कुर्बानी भी दी गई
ईद उल अजहा के मौके पर इस बार कुर्बानी किए जाने वाले जानवरों की खरीद-फरोख्त नहीं के बराबर ही हुई है। वही सारे हालात को देखते हुए मुस्लिम वर्ग के लोगों ने भी हालात से समझौता किया और यह समझौता अपने आप में किसी भी जानवर की दी जाने वाली कुर्बानी से भी बड़ी कुर्बानी ही कहलाया है। क्योंकि कहा गया है जब आप या अन्य कोई भी व्यक्ति अपने पर नियंत्रण रखकर किसी भी चीज का त्याग करें , तो उससे बड़ी कुर्बानी अन्य कोई नहीं हो सकती।  फिर भी कुछ साधन संपन्न मुस्लिम परिवारों के द्वारा कुर्बानी की रस्म को अदा किया गया । लेकिन अन्य वर्षो के मुकाबले कुर्बानी बहुत ही सीमित और कम संख्या में दी गई ।




 

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