मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किये अपने हलफनामे में कहा है की मौजूदा संसद वर्तमान की जरूरत व सुविधाओं के हिसाब से अपर्याप्त है। केंद्र सरकार ने कहा कि मौजूदा भारतीय संसद विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की वर्तमान में व भविष्य की जरूरतों, सार्वजनिक पार्किंग व रख रखाव के हिसाब से नही बनी है। ऐसे में देश को सेंट्रल विस्टा जैसी परियोजना की जरूरत है। 

अग्नि सुरक्षा, ध्वनि जैसी मूलभूत जरूरतों के अभाव के साथ बनी संसद एक शताब्दी पहले की बनी हुई इमारत है इसलिए इसके पुनर्विकास की जरूरत है।

2026 में लोकसभा सीटें बढ़ने पर जगह की तंगी होगी।

केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने कोर्ट में हलफनामें में कहा कि अग्नि सुरक्षा आज की मूलभूत जरूरत है लेकिन आज की संसद ऐसी किसी आपातकाल स्थिति से निपटने के लिए नही बनाई गयी थी। इसके अलावा कई अन्य सुरक्षा संबंधी कारण हैं।

संसद में ऑडियो विजुअल सिस्टम भी पुराने जमाने का है। हॉल में ध्वनि संबंधी व्यवस्था प्रभावी नही है। एयर कंडीशनिंग, प्लंबिंग व इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम अक्षम व अप्रभावी है ऐसे में इनका रख-रखाव काफ़ी खर्चीला है। चूंकि ये सिस्टम मूल डिजाइन का हिस्सा नही थे ऐसे में इनकी कार्य क्षमता अच्छी नही है। 

सीपीडब्ल्यूडी ने कहा की 2026 में लोकसभा की सीटें बढ़ने पर सांसदों को बैठने की असुविधा भी होगी। हॉल में बैठने के लिए प्रयाप्त जगह नही है। अभी भी सांसदों को जगह की तंगी का सामना करना पड़ता है।

क्या है सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना।

दिल्ली मेबइंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक 3 किलोमीटर के रास्ते को सेंट्रल विस्टा या राजपथ कहा जाता है। जिसके दोनों तरफ भारतीय लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण इमारतें है जिसमे संसद भवन, साउथ ब्लॉक्, नार्थ ब्लॉक, सचिवालय भवन, विजय चौक, राष्ट्रीय वॉर मेमोरियल शामिल हैं। साल 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का फैसला किया। दिल्ली में देश के महत्वपूर्ण मंत्रालय व इमारतों के डिज़ाइन की जिम्मेदारी महशूर आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियन्स व सर हर्बर्ट बेकर को सौंपी गई। संसद भवन को एडविन लुटियन्स व हर्बर्ट बेकर दोनों ने मिलकर डिज़ाइन किया था।

       बाएं में हर्बर्ट बेकर व दाएं में एडविन लुटियन्स

राष्ट्रपति भवन को एडवर्ड लुटियन्स व सचिवालय भवन जिसमे साउथ ब्लॉक व नार्थ ब्लॉक को हर्बर्ट बेकर ने डिज़ाइन किया। ये सभी इमारतें तक़रीबन एक् शताब्दी पहले बनाई गई थी जिसकी सुख सुविधाएं भी उसी हिसाब से हैं। 

ऐसे में केंद्र सरकार ने सेंट्रल विस्टा को पुनर्विकसित करने का फैसला किया है जिसका बज़ट करीब 20 हज़ार करोड़ बनाया गया है। इस परियोजना के लिए 86 एकड़ जमीन को अलॉट किया गया है। सीपीडब्ल्यूडी ने कहा कि इस परियोजना को पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक व ज्ञान से स्वरूप दिया जाएगा जो दुनियाभर में भारतीय आर्किटेक्चर का नमूना होगा। ये इमारतें सदियों तक चलेंगी। यह परियोजना राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनेंगी जो नागरिकों को भारतीय लोकतंत्र में भागीदार बनने के लिए प्रेरित करेंगी। 
केंद्र सरकार ने नई संसद, सचिवालय भवन, भारतीय लोकतंत्र का संग्रहालय, प्रधानमंत्री आवास व प्रधानमंत्री ऑफिस जैसी महत्वपूर्ण इमारतें के निर्माण की परियोजना बनाई गई है।

रिपोर्टस के मुताबिक त्रिकोणीय आकार की संसद भवन के निर्माण के लिए 912 करोड़ रुपये की लागत आएगी।


इस परियोजना में विवाद क्या है।

सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना ऐसे समय में लाई जा रही है जब देश भयंकर आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। कोविड-19 से बचाव के लिए देशभर में लगाए गए लॉकडाउन की वजह से भारतीय आर्थिक व्यवस्था को भारी मंदी का सामना करना पड़ रहा है ऐसे 20 हज़ार करोड़ की परियोजना को लेकर विपक्ष सरकार पर सवाल उठा रहा है। विपक्ष ने केंद्र सरकार पर इस परियोजना की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाये हैं। कोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस परियोजना की सहमति के लिए संसद के सभी सदस्यों की बैठक नही बुलाई। याचिकाकर्ता राजीव सूरी ने कोर्ट में लैंडयूज को लेकर केंद्र सरकार को चुनौती दी है जिसमे इस परियोजना के लिए दिल्ली के लिए मास्टर प्लान-2021 व ज़ोन-डी के लिए ज़ोनल डेवलपमेंट प्लान के प्रस्ताव में संशोधन किया गया था। लैंड यूज़ संसोधन में सरकार 9.5 एकड़ में त्रिकोणीय संसद भवन बनाने की तैयारी कर रही जा जिसे पहले जिला पार्क के लिए आबंटित किया गया था।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि इस परियोजना के लिए लुटियन्स दिल्ली की 86 एकड़ जमीन इस्तेमाल की जाएगी जिससे लोगों के घूमने के लिए जगह भी कम हो जाएगी और आप-पास की हरियाली भी कम हो जाएगी।

पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख ज़ाहिर की चिंता।

पूर्व नौकरशाहों ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिख इस परियोजना को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा में केंद्र सरकार को स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की बजाय सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में भारी भरकम राशि खर्च कर रही है जोकि ग़ैर जिम्मेदारी भरा कदम है।

पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि संसद में इस पर कोई बहस अथवा चर्चा नहीं हुई। पत्र में कहा गया है कि कंपनी का चयन और इसकी प्रक्रियाओं ने बहुत सारे प्रश्न खड़े किए हैं जिनका उत्तर नहीं मिला है। लेकिन सरकार की दलीलें हैं सभी प्रकार की प्रक्रियाओं का पालन किया गया है व परियोजना बनाते समय सभी की राय-सलाह ली गयी थी।

इस मामले की अगली सुनवाई कोर्ट में 23 जुलाई को होगी।

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