आध्यात्मिकता के बिना सामाजिक परिवर्तन सम्भव नहीं - जस्टिस ए. के. पटनायक

न्यायविदों के तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन

न्याय प्रक्रिया में सुधार और पारदर्शिता पर हुई चर्चा

600 से भी अधिक न्यायविद सम्मेलन में हुए सम्मिलित

शिवचरण/पटौदी। बिना आध्यात्मिकता के समाज का परिवर्तन सम्भव नहीं है। उक्त विचार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ए.के. पटनायक ने ओम शांति रिट्रीट सेंटर में व्यक्त किए। ब्रह्माकुमारीज के न्याय विद प्रभाग द्वारा न्यायविदों के लिए तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए जस्टिस ए.के. पटनायक ने ये बात कही। जस्टिस ए.के. पटनायक बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम के अंतिम सत्र में बोल रहे थे। "राइजिंग जूरिस्ट्स थ्रू स्पिरिचुअल एंपावरमेंट" विषय पर बोलते हर उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता के द्वारा ही सद्भावना पैदा होती है। बिना शांति के हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। एक अशांत व्यक्ति दूसरों को भी अशांत ही करेगा।
आध्यात्मिकता है मन की स्थिरता का आधार
जस्टिस ए.के.पटनायक ने कहा कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति स्वयं को ही नहीं बल्कि समाज को भी प्रभावित करता है। मन की स्थिरता का आधार आध्यात्मिकता है। न्याय प्रक्रिया में साहस एक बहुत बड़ा गुण है। साहस स्पिरिचुअल प्रैक्टिस से ही आता है। एक न्यायविद में दया और करुणा के भाव बहुत जरूरी हैं। स्वयं के एंपावरमेंट से ही हम समाज को एंपावर कर सकते हैं।
आध्यात्मिकता की सबसे बड़ी शक्ति है सत्यता
संस्थान के ज्यूरिस्ट विंग की चेयरपर्सन राजयोगिनी पुष्पा दीदी ने अपना अध्यक्षीय सम्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता की सबसे बड़ी शक्ति सत्यता है। सत्यता के द्वारा ही हम सही निर्णय कर सकते हैं। आध्यात्मिकता हमारी चेतना को जगाती है। और चेतना की आवाज हमेशा श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा देती है। आध्यात्मिकता ही मानव जीवन में संयम लाती है। जिससे मन का भटकाव खत्म हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सुकुमार पट्टाजोशी ने कहा कि न्याय में समानता का भाव जरूरी है। जो आध्यात्मिक परिवेश से ही आता है। सकारात्मक परिवर्तन के लिए राजयोग का अभ्यास आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लीगल एजुकेशन में आध्यात्मिकता के समावेश से ही सुधार सम्भव है। 

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार शर्मा ने कहा कि बिना आध्यात्मिकता के सही न्याय मिल ही नहीं सकता। आध्यात्मिकता वास्तव में अभ्यास का विषय है। आध्यात्मिकता स्वयं को जागृत करने का कार्य करती है। 
कार्यक्रम में कटक, उत्कल विश्वविद्यालय के कानून विभाग के प्रमुख सुकांता कुमार नंदा, ब्रह्माकुमारीज संस्थान के ज्यूरिस्ट विंग के राष्ट्रीय संयोजक बीके नथमल एवं अधिवक्ता रूप किशोर राठी ने भी अपनी शुभ कामनाएं व्यक्त की।
सम्मेलन में आए न्यायविदों के लिए विशेष राजयोग सत्र रखे गए। जिसमें आत्मा और परमात्मा की पहचान के साथ-साथ सृष्टि चक्र के गुह्य रहस्यों की जानकारी दी गई। योग के गहन अभ्यास द्वारा सबने एक अलौकिक ऊर्जा महसूस की। सभी ने माना कि न्यायविदों के लिए आध्यात्मिकता बहुत जरूरी है। आध्यात्मिकता के द्वारा ही न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जा सकती है।
न्याय में सुधार के लिए अनेक विषयों पर चर्चा हुई। 

ज्यूरिस्ट विंग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके लता ने कुछ  योग के अभ्यास से शांति का अनुभव कराया। बीके चांद ने ईश्वरीय स्मृति का बहुत सुंदर गीत प्रस्तुत कर मन को प्रभु स्नेह से भर दिया। ओआरसी से जूरिस्टस विंग के सक्रिय सदस्य बीके राजेंद्र ने कार्यक्रम में पधारे मेहमानों का अपने शब्दों के द्वारा आभार व्यक्त किया। संस्था के मुख्यालय, माउंट आबू से ज्यूरिस्ट्स विंग के सदस्य बीके प्रदीप एवं दिल्ली करोल बाग से वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके विजय ने मंच संचालन किया।
कैप्शन:- 1& 2. ओआरसी ज्यूरिस्ट कांफ्रेंस में बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ए. के. पटनायक
3. कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए बीके पुष्पा दीदी।
4.सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक शर्मा
5. कटक, उत्कल यूनिवर्सिटी के लॉ विभाग के प्रमुख सुकांता कुमार नंदा
6.बीके रूप किशोर राठी
7.  बीके राजेंद्र 
8 & 9. सभा में उपस्थित न्यायविद
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