योगेश चौधरी (एनएसएस कैडेट)
        गणतंत्र दिवस परेड शिविर, नई दिल्ली 2022

           वो पथ क्या,पथिक कुशलता क्या
           जिस पथ में बिखरे शूल न हों... 
           नाविक की धैर्य कुशलता क्या
           जब धाराएँ प्रतिकूल न हों.

            "कर्म पथ से राजपथ तक का सफर"

गुरुग्राम ब्यूरो। जब बचपन मे टीवी पर 26 जनवरी  समारोह को देखते थे तो उसमें होने वाली परेड को देखकर हमेशा लगता था की काश इसमें मुझे भी शामिल होने का मौका मिलेगा, जब कॉलेज में गणतंत्र दिवस परेड कैंप की गरिमा के बारे में जाना तो राजपथ में परेड करने की इच्छा और बढ़ती गई।

इस सफर की शुरुआत गणतंत्र दिवस परेड शिविर के सूचना आने के साथ हुई। कोरोना काल में असंभव से लगने वाले गणतंत्र दिवस परेड शिविर 2022 की सूचना ने मानो राजपथ में चलने के सपने को नई जान दे दी। और इसी के साथ गुरुजनो की आज्ञा लेकर तैयारी शुरू हो गई ।

अकेले अभ्यास करने में खुद की कमी जानना मुश्किल होता है और ऐसा ही मेरे साथ हुआ ऐसे समय में मुझे परेड सिखाने में मेरा साथ हिसार से मेरे साथी अमित भारद्वाज व गंगा गौतम ने दिया जो पूर्व में राजपथ पर हिंद की फ़ौज झांकी का प्रतिनिधितत्व कर चुके थे। परेड करना मेरे लिए नया था पर इसे सहज रूप से उन्होंने सिखाया मुझे परेड करने के काबिल बनाने का श्रेय उनको जाता है ।

मेरे गुरुजनों व आईजीयू राष्ट्रीय सेवा योजना परिवार के विश्वास ,मार्गदर्शन और आशीर्वाद से मैं विश्विधालय परिसर व जिला स्तर में अच्छा प्रदर्शन कर पाया और मेरा चयन राज्य स्तर के लिए हुआ।

राज्य स्तर से चयन प्रक्रिया और भी कठिन होती जाती है परेड के अलावा हरियाणा के लोक गीत ,लोक नृत्य ,सामान्य ज्ञान, रासेयो की गतिविधियों की जानकारी आदि आयामों के आधार पर राज्य से कुछ चुनिंदा छात्रों का चयन पूर्व गणतंत्र दिवस परेड शिविर जयपुर के लिए होना था। उम्मीद तो थी परंतु साथ ही थोड़ा डर भी था  इसी डर से बचने के लिए मैं अपने घर से लगभग 300 किलोमीटर दूर हिसार शहर के गुरू जम्भेश्वर विश्विधालय पहुँचा जहाँ मुझे डॉ अनिल भांनखड जी का सानिध्य प्राप्त हुआ जिसके कारण मै पूर्व राजपथ पर परेड करने वाले स्वयंसेवकों के साथ अभ्यास कर पाया। अब उस समय मैं परेड तो सिख चुका था अब कठिनाई थी चयन प्रक्रिया में लोक नृत्य की जो आज से पहले मैने कभी सिखा नहीं था परंतु यह डर प्रेरणा तब बन पाया जब मेरे पिता जी ने कहा की बेटा अब इस पृतिस्पर्धा में भाग लिया है तो अपने सपने को सच करके ही वापिस पीछे देखना,तब मैंने अपने साथियों के साथ लोक नृत्य सीखना आरम्भ किया,जब रात में घर पर सब सो रहे होते थे उस समय हर रोज हम छत पर लोक नृत्य की तैयारीया करते थे।जिसके बाद मैने राज्य स्तर चयन प्रक्रिया मे भाग लिया था। उम्मीद तो थी कि मेरा चयन होगा साथ ही थोड़ा डर भी लग रहा था। 

अगले दिन सुशांत सर कार्यक्रम अधिकारी के फोन ने मेरे डर को खुशी में बदल दिया। एनएसएस समन्वयक डॉ करण सिंह, डॉ दीपक गुप्ता व प्रो० एसके गक़्खड, कुलपति इंदिरा गांधी विश्विधालय रेवाडी के आशीर्वाद और विश्वास से मेरा चयन पूर्व गणतंत्र दिवस परेड शिविर जयपुर के लिए हो चुका था।

जयपुर कैंप के लिए मैं बहुत उत्सुक था हरियाणा से 20 छात्र व 20 छात्रा की टीम उत्तर क्षेत्र में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली थी। 08 राज्यों के बीच हरियाणा राज्य अपनी संस्कृति, वेषभूषा, शिष्टाचार के द्वारा उत्तर क्षेत्र में उभर कर सामने आया और इसमें सबसे बड़ा योगदान हरियाणा राज्य के कार्यक्रम अधिकारी डॉ ललिता गौर, डॉ दिनेश चहल व डॉ मनोज सर के कुशल नेतृत्व का था।

10 दिवसीय शिविर में हमें शिविर निदेशक श्री एसपी भटनागर सर का व वहाँ जयपुर के कार्यक्रम अधिकारी डॉ विशाल गौतम जी का पिता स्वरूप बहुत स्नेह मिला साथ ही उस्ताद जी के द्वारा परेड की बारीकियां भी सीखी। गुलाब सर के कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन से हमारे परेड अभ्यास में वो निखार आया जिसने हमें कच्ची मिट्टी से पक्का घड़ा बनाया। शिविर में हमें पूर्व राजपथ प्रतिनिधियों से मिलने का अवसर भी मिला साथ ही भारत के उत्तर क्षेत्र में आठ राज्यों के स्वयंसेवकों के साथ रहना, परेड करना, सांस्कृतिक कार्यक्रम ,बौद्धिक परिचर्चा हमें रचनात्मक दिशा में प्रेरित करने वाला था। मैंने हरियाणा राज्य के दिवस में राज्य की ओर से मंच संचालन करना स्वीकार किया। कैंप में भ्रमण हेतु आमेर का किला, जलमहल व हवामहल ले जाया गया। भारत की धरोहर को प्रत्यक्ष देखना अपने आप में अपूर्व अनुभूति देता है। 

शिविर में देशभक्ति गीतों से हृदय का साहस और भी बढ़ जाता था और उस्ताद जी के गुड शाबाश सुनकर कदम और भी अच्छे हो जाते, 20 टाइम कदमताल शुरू कर की आवाज से खुशी जोश और भी बढ़ जाती। दस दिन के कड़े परेड अभ्यास में हमारी बची खुची कमियां दूर कर दी गई। अंतिम दो दिन चयन प्रक्रिया का था जिसमें सबको अपना श्रेष्ठ देना था।

जिसमें हरियाणा राज्य से केवल तीन लड़को व तीन लड़कियों का चयन गणतंत्र दिवस परेड शिविर दिल्ली के लिए होना था अब हम सबको बस परिणाम का इंतजार था। 

लगभग एक माह के इंतजार के बाद परिणाम आया और मेरा चयन गणतंत्र दिवस परेड शिविर 2022 के लिए हो चुका था ।मैं बहुत खुश था और मुझे से कहीं ज्यादा खुशी मेरे माता-पिता ,मेरे परिवार,मेरे गुरुजनो व मेरे मित्रों को थी।

गणतंत्र दिवस परेड शिविर में भाग लेने वाला मै इंदिरा गाँधी विश्विधालय का पहला छात्र था। मन में बहुत सी आशा, राजपथ के सपने ,राष्ट्रीय सेवा योजना की गरिमा को दिल में बसाए, राजपथ का मरकस बनाने,माता-पिता व गुरुजनों का आशीर्वाद लेकर हमारी  हरियाणा की टीम राजधानी फतह करने निकल पड़ी।

हमारा प्रथम पड़ाव राज्य एनएसएस अधिकारी डॉ भगत सिंह सर से भेंट व स्वागत के साथ शुरू हुआ। वहाँ सर से मिलना और उनको सुनना जीवन का अविस्मरणीय पल था जिसका हमें बेसब्री से इंतजार था। सर के बातों से यह एहसास और पक्का हो गया था कि हम राष्ट्र के उस गौरव का हिस्सा बनने वाले वो भाग्यशाली स्वयंसेवक हैं जिसका सपना हर स्वयंसेवक देखता है।उनके शुभकामनाओं के साथ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते गणतंत्र दिवस परेड शिविर 2022 नई दिल्ली शिविर के लिए रवाना हुए। 

नए साल की सुबह हम दिल्ली में थे दिल्ली में ठंड के बारे में जितना सुना था कुछ ऐसा ही महसूस भी हुआ ।कैंप के शुरू के 6 दिन मौसम ने हमारा साथ नहीं दिया कभी तेज बारिश तो कही भयंकर कोहरा और इसी समय एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत जोड़ीदार राज्य तेलंगाना के साथ हमने एक दूसरे के संस्कृति वेशभूषा, खानपान ,बोली आदि को साझा किया। उनकी भाषा व नृत्य सीखना उनके द्वारा अपनी भाषा सबसे बढ़िया बोलना और हमारी हरियाणवी बोलना एक भारत श्रेष्ठ भारत की सफलता का परिचायक था।

जल्द ही शिविर की दिनचर्या शुरू हो गई ।हर दिन नए उत्साह नए जोश नई चुनौतियों के साथ आता था और नई सीख देकर जाता था ।

सुबह सुबह उठना समय से तैयार होकर फॉल इन होना, बस में सोते हुए ग्राउंड जाना और ठंड के साथ कोहरे को चीरते प्रैक्टिस करने का एक अलग ही मजा था। 

एक छत के नीचे भारत के हर कोने से आए एनएसएस के स्वयंसेवकों का रहना पूरे शिविर को मिनी इंडिया का रूप दे रहा था।घर से दूर रहते हुए भी लोहड़ी और पोंगल त्योहार मनाना सबके चेहरों पर खुशी ला देता था। 

12 जनवरी के राष्ट्रीय युवा महोत्सव के  उद्घाटन सत्र पर माननीय प्रधानमंत्री जी को वर्चुअल रूप से सुनने का अवसर मिला।इसी बीच हरियाणा राज्य के पारंपरिक परिधान, वेशभूषा ,गहने सभी के आकर्षण का केंद्र रहा जिसे युवा कार्यक्रम व खेल मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने खूब सराहा। 
हर शाम शिविर में सांस्कृतिक संध्या में अलग-अलग राज्यों की संस्कृति को देखना  जानना उनके परिधान नृत्य गीत आदि से प्रत्यक्ष होना ,अपने राज्य के बारे में बताना अपनी संस्कृति की प्रस्तुति देना, हरियाणा राज्य का राष्ट्रीय मंच में प्रतिनिधित्व करना एक स्वयंसेवक के लिए गर्व की बात है।

इस सब में मुझे मेरे हरियाणा के साथी स्वयंसेवक कपिल राठौड़,सुनील कुमार और छात्रा रुचिका,गरिमा,सुनीता व कार्यक्रम अधिकारी डॉ ललिता गौर मैडम का पूर्ण सहयोग मिला,साथ ही पूरे शिविर में रामाकृष्णन सर ,कबीर सर, मुकेश सर और करिश्मा मैडम का  बहुत प्यार मिला।

इन सब के साथ ही धीरे-धीरे हमारी परेड अभ्यास और कड़ी होती गई सुबह राजपथ और शाम में करिअप्पा परेड ग्राउंड में अभ्यास की थकान और दोपहर के बौद्धिक सत्र में नींद का मानो नाता ही जुड़ गया था।

रोज की परेड प्रैक्टिस और ड्रिल इंस्ट्रक्टर सर के कमांड के साथ हमारी परेड सुधरती गई अब तो 1-2 -1, कदमताल ,एड़ी मार्च की आवाज नींद में भी सुनाई देती थी ।

जब हमें निदेशालय की ओर से पता चला कि कोरोना के कारण प्लाटून में स्वयंसेवकों की संख्या 144 से घटाकर 96 कर दी गई है तो हमारी चिंता और भी बढ़ गई क्योंकि अब 200 स्वयंसेवकों में से केवल 96 को ही राजपथ की गरिमा का हिस्सा बनने का अवसर मिलेगा। 

शिविर में अपने स्वास्थ्य के साथ ही शारीरिक और मानसिक दृढ़ता को बनाए रखते हुए कोरोना काल में मास्क लगाकर पूरे शिविर की गतिविधियां करना, परेड करना और कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच 96 के प्लाटून में अपना स्थान सुनिश्चित करना किसी चुनौती से कम नहीं था।
          
पहले दिन राजपथ में जाने पर आंखों में आंसू आ गए थे। राजपथ की शोभा  और सूर्योदय के साथ इंडिया गेट का दृश्य आंखों को सुकून भी दे रहा था।

राजपथ में चलने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा एक तरफ इसमें उत्साह था तो दूसरी और संघर्ष और इन दोनों की बीच मेहनत और धैर्य।

कॉलेज से गणतंत्र दिवस परेड शिविर तक का सफर जितना कठिन था उससे कहीं ज्यादा मुश्किल प्लाटून में अपनी जगह बनाना था। ऐसे कठिन समय में मेरा साथ मेरे माता-पिता एवं परिवार ने दिया परिवार का मुझ पर विश्वास और उनके आशीर्वाद ने मेरा मनोबल गिरने नहीं दिया। साथ ही मेरे गुरूजनों के द्वारा दी गई सीख, उनके अनुभव,मार्गदर्शन के बिना शायद यह सब संभव नहीं था। 

उनकी खुद को मजबूत रखना, ईमानदार बने रहना, मेहनत करना, हिम्मत न हारने की सीख ने दिमाग में घर कर लिया और इसी प्रेरणा ने मुझे आगे की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया साथ ही और इस तरह मैंने अपना स्थान प्लाटून में सुनिश्चित किया और मुझे एनएसएस प्लाटून मे शामिल होने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ ।

लंबे समय के इंतजार के बाद आखिर 26 जनवरी का वो एतिहासिक गणतंत्र दिवस का दिन आ ही गया जब मेरा वो बचपन का सपना हकीकत में तब्दील होने जा रहा था एनएसएस की वर्दी पहनकर सफेद टाइगर नाम से जानने वाले स्वयंसेवक राजपथ पर कदमताल करने व तिरंगे और महामहिम् राष्ट्रपति जी को सलामी प्रस्तुत करने के लिए तैयार थे।

सुबह 4:00 बजे से हम राजपथ में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे सूर्योदय के साथ ही देश भक्ति गीत, ड्रम के साथ कदमताल की आवाज ,लोगों के जय हिंद घोष दिलों में जोश भर देता था। विजय चौक से इंडिया गेट और नेशनल स्टेडियम तक 3.8  किलोमीटर परेड करना, राष्ट्र के गौरव गणतंत्र दिवस समारोह का हिस्सा बनना, तिरंगे को सलामी देना जीवन का सबसे स्वर्णिम पल था ।

एनएसएस ने मुझे वह मंच दिया जिसमें मैं अपनी छुपी प्रतिभा को पहचान सकूं और भारतीय गौरव का हिस्सा बन सकूं।मुझे हर कदम पर मेरे माता-पिता ,वरिष्ठ स्वयंसेवक अमित भरद्वाज, गंगा गौतम एवं संपूर्ण रासेयो परिवार का सहयोग प्राप्त होता रहा। रासेयो ने ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी,गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी से मिलने का ,उनको प्रत्यक्ष सुनने का सौभाग्य दिया। रासेयो ने ही मुझे हमारे युवा कार्यक्रम व खेल मंत्री श्री अनुराग ठाकुर जी से मिलने का अवसर प्रदान किया। अनुराग ठाकुर जी एवं सचिव उषा शर्मा मैडम से मिलना उनसे भेंट वार्ता करना प्रेरणादायक था।

रासेयो ने हरियाणा राजभवन में राज्यपाल सुश्री बंडारू दत्तात्रेय जी से भेंट का अवसर दिया।रासेयो ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया। मेरे लिए यह अनुभव अविस्मरणीय है मैं हृदय से राष्ट्रीय सेवा योजना का आभार व्यक्त करता हूं।

"पथ तो बहुत है लेकिन तेरे जैसा कोई पथ नहीं...
चलना तो हर कोई चाहता है लेकिन राजपथ पर चलने वाला हर एक नहीं"
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