साल 2018 से 2019 में सफाईकर्मियों की मौत में 62 फ़ीसदी इज़ाफ़ा हुआ।

मनीषबलवान सिंह जांगड़ा
हिसार। एक तरफ स्वच्छता अभियान के नाम पर हम सबसे स्वच्छ शहरों की लिस्ट तैयार करते हैं, करोडों रुपये स्वच्छता अभियान के ब्रांड अम्बेसडर के नाम पर फ़िल्म अभिनेताओं व खिलाड़ियों को देते हैं। लेकिन जिस स्वच्छता अभियान की दुहाई पर हम दुनियाभर में अपनी साख बनाते हैं, उसी स्वच्छता या सफ़ाई के लिए हमारी सरकारों व संस्थानों के पास सफाईकर्मियों के लिए सुरक्षा यंत्र खरीदने के लिए बज़ट नही है।

घटना हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर की है, जहां शुक्रवार को कई दिनों से बंद पड़े सेप्टिक टैंक को साफ़ करने के लिए उतरे दो मजदूरों की टैंक में मौजूद जहरीली गैस से दम घुटने के चलते मौत हो गई।

दोनों मजदूर उत्तरप्रदेश से काम की तलाश में आए थे।

जानकारी के मुताबिक उत्तरप्रदेश से आए देशराज(28) पुत्र सुखराम निवासी गांव चमनचेड़ व गुरवचन(30) निवासी बदायूं, काम की तलाश में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में आये थे। उन्हें कुछ दिनों बाद एक सेप्टिक टैंक को साफ करने के काम मिला, दोनों टैंक के अंदर उतरे तो कुछ देर वापिस न आने पर बाक़ी मजदूरों ने टैंक के अंदर झांका तो दोनों अचेत मिले। स्थानीय पुलिस को जानकारी देने पर दमकल विभाग की टीम को बुलाया गया। जेसीबी की मदद से टैंक के लैंटर को तुड़वाया गया। इसके बाद ऑक्सीजन सिलेंडर की मदद दमकलकर्मियों ने दोनों को बाहर निकाला। दोनों मजदूरों को सिविल अस्पताल में ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

इससे पहले कुछ लोगों ने टैंक में उतरने की कोशिश भी की, लेकिन जहरीली गैस के डर से नहीं उतर पाए। देशराज अपने पीछे दो बेटे, दो बेटियां, पत्नी और बूढ़े माता-पिता छोड़ गया है। गुरवचन की पत्नी और दो छोटे बच्चे छूट गए हैं। थाना प्रभारी सदर संजीव गौतम ने कहा कि एंबुलेंस में दोनों को लाया गया था। मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया। शवों का पोस्टमार्टम करने के बाद परिजनों को सौंप दिया गया।

भारत में मैन्युअल सकैवैंजिंग अवैध है।

साल 1993 में पारित 'मैन्युअल सकैवेंजिंग एंड कंस्ट्रक्शन और ड्राई लैट्रिनस एक्ट' के अनुसार हाथ से मैला ढोने को अपराध मानते हुए आर्थिक दंड व कारावास का प्रावधान है। और फिर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के इतिहासिक फैसले में बिना सुरक्षा उपकरणों के मैनहोल में जाने पर प्रतिबंध लगाया गया। सभी कर्मचारियों के लिए मास्क, हेलमेट, दस्ताने, स्पेशल शूट की व्यवस्था करना अधिकारी या ठेकेदार के दवारा अनिवार्य है। ऐसा न करना दंडात्मक अपराध है।

मैनहोल की ज़हरीली गैसों में मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें शामिल है। सफ़ाई कर्मचारियों में से 80 फ़ीसदी कर्मचारी रिटायरमेंट की उम्र से पहले ही मर जातें है।

हर तीन दिन में एक सफाईकर्मी की मौत।

संसद में लोकसभा सांसदों द्वारा सेप्टिक टैंक व सीवर में जहरीली गैस के चलते मौत से मांगे गए आंकड़ों पर सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा जवाब में बताया गया कि साल 2018 से 2019 में सफाईकर्मियों की मौत में 62 फ़ीसदी इज़ाफ़ा हुआ है।

सफाई कर्मचारी राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में सीवर व सेप्टिक टैंकों में सबसे ज़्यादा सफाईकर्मियों की मौत हुई। सफाई के दौरान साल 2015 में 57, 2016 में 48, 2017 में 93, 2028 में 68 व साल 2019 में 110 मौतें हुई।

राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक 13 राज्यों के नगर निगमों व ग्राम पंचायतों में 14,559 हाथ से मैला उठाने वाले लोगों को दर्ज़ किया गया। ये सर्वे 2013-14 से 31 जनवरी 2020 तक किया गया। वहीं 18 राज्यों के 194 जिलों में 48,345  हाथ से मैला ढोने वाले लोगों को दर्ज़ किया गया। सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी 2020 तक कुल 62,904 लोग हाथ से मैला ढोने वाले काम से शामिल हैं।

ग़ैर सरकारी संस्थान सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक हर तीन दिन में एक सफाईकर्मी की मौत सफाई करने के दौरान ज़हरीली गैस से दम घुटने से हो रही है। जनवरी 2017 से सितम्बर 2019 तक 221 सफाई कर्मियों की मौत हो चुकी है। 1993 से अब तक करीब 1760 से अधिक कर्मचारियों की सीवर में दम घुटने से मौत हुई।

लगातार ऐसे में मामले सामने आ रहे हैं।

बता दें कि इसी महीने की शुरूआत में झारखंड के देवघर जिले में एक निर्माणाधीन सेप्टिक टैंक के भीतर उतरे छह लोगों की जहरीली गैस के कारण मौत हो गई थी।

उससे पहले जुलाई महीने में तमिलनाडु में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान चार युवकों की मौत हो गई थी।

बीते जून महीने में छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में सेप्टिक टैंक की सफाई करने के दौरान जहरीली गैस के प्रभाव में आने से सफाई कर्मचारी समेत चार लोगों की मौत हो गई थी।

उससे पहले अप्रैल महीने में महाराष्ट्र के पालघर जिले में तीन मजदूरों की सेप्टिक टैंक सफाई करने के दौरान मौत हो गई थी।

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