लगातार कई महीनों से चल रहे विरोध प्रदर्शन के चलते सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।

मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार
कोरोना संकट व सरकार की नीतियों के चलते पहले से ही आर्थिक स्तर पर जूझ रहे लेबनान में बेरूत धमाके ने सरकार को चारों तरफ़ से घेर लिया है। बढ़ते विरोध प्रदर्शन के दबाव में प्रधानमंत्री हसन दिआब समेत पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले विरोध प्रदर्शनों में सरकार के इस्तीफ़े की मांग तेज़ हो रही थी। सोमवार को प्रधानमंत्री हसन दिआब ने पूरी कैबिनेट के साथ राष्ट्रपति माइकल इयोन को अपना इस्तीफ़ा सौंपा। 

हालांकि राष्ट्रपति ने सरकार से जब तक नई कैबिनेट का गठन नहीं हो जाता है उस वक़्त तक पद पर बने रहने के लिए कहा है।

बता दें कि 4 अगस्त को बेरूत के तटीय इलाके में 2750 रखे अमोनियम नाइट्रेट में धमाके के बाद 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी व हज़ारों लोग घायल हो गए थे।

पहले से आर्थिक संकट से जूझ रहा है लेबनान।

कोरोना वायरस व सरकार में भ्रष्टाचार व वंशवाद की वजह से लेबनान में बेरोजगारी व महंगाई चरम पर है। लेबनान में महंगाई व बेरोजगारी से भुखमरी के आसार बने हुए है। जिसके चलते देश के युवा सड़कों पर हैं व सरकार के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं।
पिछले सप्ताह मंगलवार को लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए धमाके में मरने वालों की संख्या बढ़कर 220 हो गई है और बेरूत के गवर्नर मरवान अबूद के अनुसार अभी भी 110 लोग लापता हैं। इनमें से अधिकांश विदेशी कर्मचारी और ट्रक ड्राइवर हैं। इस धमाके के बाद लेबनान में आर्थिक संकट भी गहराता जा रहा है। इस धमाके की वजह लेबनान के राजनीतिक वर्ग में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुशासन माना जा रहा है, शहर के मुख्य हिस्से में विस्फोटक रखने की वजहों को लेकर भी सवाल पूछा जा रहा है।

इस वजह से बेरूत की सड़कों पर हज़ारों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को भी लगातार तीसरे दिन प्रदर्शनकारियों और पुलिस में हिंसक झड़प देखने को मिली है। लेबनान के प्रधानमंत्री बता चुके हैं कि धमाके की वजह बेरूत बंदरगाह पर पिछले छह सालों से जमा किया जा रहा अमोनियम नाइट्रेट था। बेरूत बंदरगाह पर 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट मौजूद था, जिसमें आग लगने के चलते धमाका हुआ था।

इस धमाके चलते बेरूत में कम से कम तीन अरब डॉलर के नुक़सान का अंदेशा जताया जा रहा है, लेकिन इस धमाके के असर के चलते पूरे लेबनान की अर्थव्यवस्था को 15 अरब डॉलर का नुक़सान होने की आशंका जताई जा रही है।

लेबनान के संकट को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां भी मानवीय सहायता मुहैया करा रहीं हैं जबकि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमुएनल मैक्रों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने लेबनान को 29.7 करोड़ डॉलर की मदद देने का फ़ैसला भी लिया है।

लेबनान की संसद को नया प्रधानमंत्री चुनना होगा।

सरकार के इस्तीफा के बाद लेबनान की संसद को नई सरकार चुननी होगी। लेकिन जानकारों के मुताबिक विभिन्न समुदायों के बीच टकराव की वजह से ये परिक्रिया बहुत ही मुश्किल होगी। 1975 से लेकर 1990 तक चले गृहयुद्ध के कारण कई लड़ाके सरदारों ने राजनीति में क़दम रखा था और वो अब भी लेबनान के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में उनका काफ़ी दबदबा है।

पश्चिमी एशिया में मौजूद लेबनान में कई धर्मों के लोग मौजूद हैं। लेबनान की जनसंख्या में 61.1 फ़ीसदी मुस्लिम समुदाय है जिसमें शिया व सुन्नी समुदाय के लोग शामिल है, 33.7 फ़ीसदी मेरोनाइट ईसाई ऑर्थोडॉक्स व क़रीब 6 फीसदी ड्रयूज़ लोग शामिल हैं। मध्यपूर्व के बाकि मुस्लिम देशों की तरह लेबनान में भी शिया व सुन्नी समुदाय का टकराव देखने को मिलता है। एक समझौते के अनुसार राजीनीतिक स्थिरता के लिए लेबनान ने राष्ट्रपति के पद को मेरोनाइत ईसाई, प्रधानमंत्री शिया समुदाय से व पार्लियामेंट के स्पीकर पद सुन्नी समुदाय के लिए रिजर्व रखा गया है। लेकिन इसी समझौता लेबनान की राजनीति में अस्थिरता का कारण बना हुआ है।

लेबनान में हिजबुल्ला जोकि एक ताक़तवर शिया समुदाय है जिसे ईरान की सरकार का समर्थन हासिल है। दूसरी तरफ़ सुन्नी समुदाय है जिसे सऊदी अरब व इजराइल का समर्थन हासिल है। ऐसे में दोनों की समुदायों के हितों का टकराव चलता रहता है। 

हिजबुल्ला का लेबनान की सरकार में हस्तक्षेप है जिसके ताक़तवर नेता को सैन्य व आर्थिक सहायता सीरिया व ईरान मुहैया करवाते हैं। अमेरिकी सरकार व यूरोपीय यूनियन ने हिजबुल्ला को आतंकवादी संगठन का दर्ज़ा दिया हुआ है। बेरूत के तटीय इलाके में हुआ विस्फ़ोट रफ़ीक़ साद हरीरि के हत्या पर फ़ैसले से ठीक एक दिन पहले हुआ है जिससे सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं थी अभी सरकार के लिए नासूर बन कर उभरी है।

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