पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 के तहत सतलुज-यमुना के पानी को बराबर हिस्सों में पंजाब व हरियाणा में बांटा था जिसके लिए एसवाईएल का निर्माण किया गया था

मनीषबलवान सिंह जांगड़ा, हिसार
एसवाईएल(सतलुज-यमुना लिंक) एक ऐसा मुद्दा है जिसने पंजाब व हरियाणा के रिश्तों को कई दशकों से प्रभावित किया है। ये एक ऐसा मुद्दा है जिससे सरकारें बनती हैं व गिरती हैं। चुनावों में ये मुद्दा चरम पर होता है लोगों को नहर के निर्माण व पानी के बंटवारा न करने के वायदे किए जाते हैं और लोग सम्मोहित भी हो जाते हैं। दशकों से ही ये मुद्दा कोर्ट में है लेकिन कोई समाधान नही निकल रहा। अब सुप्रीम कोर्ट में अंतिम पड़ाव की सुनवाई चल रही है।  

मंगलवार को एसवाईएल नहर को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच हुई ऑनलाइन बैठक बेनतीजा रही। पंजाब के मुख्यमंत्री व हरियाणा के मुख्यमंत्री अपने अपने पक्ष पर अटल रहे जिससे बैठक करने का फ़ैसला लिया है। तीनों ही नेताओं ने अलग-अलग बयान दिए, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इसे भावनात्मक मुद्दा बताते हुए कहा कि पानी का बंटवारा किया गया तो पंजाब जलने लगेगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे से पंजाब में अलगाववाद फिर से पनप सकता है। वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ट्वीट कर कहा कि हमने अपना पक्ष बरकरार रखा है, एसवाईएल का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में दोनों मुख्यमंत्रियों की दुबारा से बैठक करवाने का निर्देश दिया है। दोनों मुख्यमंत्री बैठक के बाद जल शक्ति मंत्री के पास जाएंगे।

एसवाईएल विवाद है क्या जिससे दोनों राज्य आमने सामने हैं।

साल 1955 में इंटर-स्टेट मीटिंग में रावी व ब्यास नदी के कुल पानी के प्रवाह का आंकलन किया गया। मीटिंग में तय हुआ कि रावी-ब्यास में 15.85 एमएएफ(मिलियन एकड़ फ़ीट) पानी है। केंद्र सरकार द्वारा 15.85 एमएएफ पानी को तीन राज्यों में आबंटित करने का फ़ैसला लिया गया। राजस्थान, अविभाजित पंजाब व जम्मू-कश्मीर में पानी को बांटा गया, जिसमे राजस्थान को 8 एमएएफ़, पंजाब को 7.2 एमएफ़ व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ़ पानी दिया गया। 


साल 1966 में भाषा के आधार पर पंजाब का दो हिस्सों में बंटवारा हुआ। केंद्र सरकार द्वारा "पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966" के तहत 1 नवम्बर 1966 को हरियाणा राज्य का गठन हुआ। देश में आपातकाल लगा हुआ था ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 की धारा 78 का प्रयोग कर पहली पंजाब के पानी को हरियाणा के साथ बराबर बांटने का आदेश दिया, लेकिन पंजाब ने इसका विरोध किया। 18 नवम्बर 1976 को हरियाणा में भजन लाल की सरकार ने पंजाब को 1 करोड़ रुपए दिए, लेकिन पंजाब ने विरोध जारी रखा। साल 1980 में पंजाब की सरकार बर्खास्त होने के बाद 1981 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री भजन लाल व राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में एसवाईएल(सतलुज-यमुना लिंक) नहर के निर्माण को लेकर दिसम्बर 1981 में समझौता हुआ जिसमे राजस्थान को 8.6 एमएएफ़, पंजाब को 4.2 एमएफ़, हरियाणा को 3.5 एमएफ़, दिल्ली को 0.2 व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ़ पानी आबंटित किया गया। समझौते में 214 किलोमीटर की नहर बनाने को लेकर रजामंदी हुई। पंजाब की तरफ 122 व हरियाणा की तऱफ से 92 किलोमीटर की लंबाई निर्धारित की गई।


हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर का निर्माण एक साल में ही पूरा कर दिया। 8 अप्रेल 1982 को इंदिरा गांधी ने पटियाला के "कपूरी" में पंजाब की ओर से नहर के निर्माण को लेकर उद्धघाटन किया। काम शुरू हुआ लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने इस विरोध किया, पंजाब में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।

24 जुलाई 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ जिसमे पंजाब नहर को बनाने के लिए राजी हुआ लेकिन अगस्त 1985 में संत हरचंद सिंह लोंगोवाल को उग्रवादियों ने गोलियों से भून दिया गया।


साल 1988 में पंजाब में उग्रवाद अपने चरम पर था ऐसे में उग्रवादियों ने लोंगोवाल की हत्या के बाद एसवाईएल के निर्माण में लगे चीफ़ इंजीनियर समेत 30 मजदूरों की हत्या कर दी। इसके बाद 1990 में नहर के प्रोजेक्ट में लगे दो चीफ इंजीनियरों की हत्या कर दी। इससे नहर का काम रुक गया। हरियाणा के तत्कालीन सीएम हुकुम सिंह ने नहर का काम सीमा बॉर्डर रोड़ आर्गेनाइजेशन(बीआरओ) के द्वारा करवाने की मांग की। 

1996 में हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल का निर्माण एक साल में करने का निर्देश दिया। 2004 में पंजाब सरकार ने विधानसभा में "टर्मिनेशन ऑफ अग्रीमेंट एक्ट 2004" पारित कर 1981 के समझौते को खारिज़ कर दिया। इस एक्ट के बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के रिफरेन्स से आर्टिकल 143 का उपयोग कर(जिसमे राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से किसी कानूनी मसले पर सलाह ले सकता है, सर्वोच्च न्यायालय अपनी सलाह दे भी सकती है और न भी, लेकिन भारतीय सविंधान लागू होने से पहले किसी कानूनी मसले पर राष्ट्रपति को अपनी सलाह देने पर सर्वोच्च न्यायालय बाध्य है। दोनों ही स्थितियों में राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मानने पर बाधित नही हैं।) सुप्रीम कोर्ट से 2004 में पंजाब द्वारा पारित पंजाब टर्मिनेशन ऑफ अग्रीमेंट एक्ट की वैधता को लेकर सलाह मांगी। 

12 साल तक केस पर कोई सुनवाई नही हुई। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सविंधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया। 26 फरवरी 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने सविंधान पीठ का गठन कर सुनवाई की और सभी पक्षों को अपना-अपना पक्ष रखने को बुलाया। 8 मार्च 2016 को मामले की दूसरी सुनवाई थी लेकिन इसी बीच पंजाब सरकार ने पंजाब सतुलज-यमुना लिंक कैनाल(Rehabilitation and re-vesting of proprietary Rights) बिल 2016 को विधानसभा में पास कर नहर के लिए अधिग्रहित जमीन को किसानों को वापिस लौटा दिया। 

अकाली दल के समर्थकों ने 120 से ज़्यादा जेसीब व भारी भीड़ की मदद के साथ नहर की खुदाई वाली जगह को भर दिया व जमीन सपाट कर दी।

क्या है पंजाब व हरियाणा के तर्क व मांग।

पंजाब ने एसवाईएल नहर के बंटवारे को असवैंधानिक बताया है व केंद्र सरकार पर इसे 1920 की परिस्थितियों के अनुसार आबंटन करने का आरोप लगाया है। पंजाब का कहना है कि 1981 का समझौता पंजाब के लोगों के हितों को मद्देनजर रख कर नही लिया गया। इसके साथ ही पंजाब सरकार ने कहा की पानी का बंटवारा स्पेशल "एग्जेक्युटिव आर्डर" के आधार पर नही वर्तमान की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए स्पेशल ट्रिब्यूनल के आधार पर होना चाहिए।

वहीं हरियाणा ने कोर्ट में कहा है कि हरियाणा में पंजाब की तुलना में पानी की कमी है जिसके चलते कई क्षत्रों में फ़सल की पैदावार कम हो रही है। हरियाणा ने 1966 के पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत सतलुज-यमुना नदी का पानी हरियाणा को देने की मांग की।

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