सुशांत की मृत्यु पर मीडिया ट्रायल न करें, आत्महत्या के मुद्दे पर गहन विचार करें

हिसार ब्यूरो।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार  हरियाणा में वर्ष 2019 के दौरान  4191 व्यक्तियों ने आत्महत्या की  और यह आंकड़ा इससे पिछले साल की तुलना में 18.2% अधिक था।  इसका प्रमुख कारण बीमारी के इलावा परिवार व मित्रों के सपोर्ट सिस्टम का टूटना है। 

विश्व आत्महत्या निरोध दिवस के उपलक्ष्य में  वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब द्वारा आयोजित वैबिनार को संबोधित करते हुए

महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक की पूर्व प्रोफेसर व जानी मानी मनोवैज्ञानिक डॉ प्रोमिला बत्रा ने बताया कि वर्ष 2019 में  देश भर में दर्ज कुल 139123 मामले दर्ज़ किए गए। प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में 70% पुरुष और 30% महिलाएं हैं।

प्रदेश में सबसे अधिक 753 (18%) व्यक्तियों ने  बीमारी के कारण, 649 (15.5%) ने  पारिवारिक समस्याओं को लेकर, 317 (7.5%) ने शादी संबंधित समस्याओं के कारण तथा 87 (2.1%) ने शराब व नशे की वजह से खुदकुशी की।

डॉ बत्रा ने कहा कि होनहार अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की जांच के साथ साथ इस मुद्दे पर सभी को गहन विचार करने की जरूरत है कि आखिर  युवा आत्महत्याएं  क्यों  कर रहे हैं और किस तरह इस रुझान को रोका जा सकता है।
उन्होंने ने कहा कि इस विषय पर उपलब्ध रिसर्च से पता चलता है कि किसी गंभीर समस्या के समय यदि परिवार और मित्रों की मदद न मिले तो व्यक्ति अवसाद से घिर जाता है और  निराशावस आत्महत्या कर लेता है।

उन्होंने कहा कि सुशांत के मामले में लगता है ये दोनों ही सहायता सुविधाएं सुलभ नहीं थीं और यह दुर्घटना घटी

डॉ प्रोमिला बत्रा ने कहा कि परिवार जिस तरह से बच्चों पर पढ़ाई में नंबरों का दबाव बनाते हैं, उससे भी निराश हो कई बच्चे आत्महत्या कर जाते हैं। उन्होंने कहा कि परिवार को बच्चों के मनोविज्ञान को समझकर उनका साथ देना चाहिए.डॉ बत्रा ने कहा कि आत्महत्या मामलों की कवरेज में मीडिया का रोल भी अक्सर अच्छा नहीं होता। मीडिया संवेदनशील होने की बजाय सनसनी पैदा करता है और मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है। राजनैतिक दल भी बीच में अपनी रोटियां सेकने आ जाते हैं। रिसर्च में पाया गया है कि इस तरह की कवरेज से आत्महत्याओं के मामले बढ़ जाते हैं। बार बार पुरानी घटनाओं का जिक्र, पुलिस की गाड़ियों के पीछे पत्रकारों का दौड़ना, दर्शकों का एक अजीब मनोरंजन बना दिया जाता है । इससे दर्शकों में उन्माद सा भर जाता है जिसे सोशल मीडिया पर आने वाली टिप्पणियों में देखा जा सकता है।

टेलीविजन कवरेज में व्यक्तियों की निजता का भी ख्याल नहीं रखा जाता।

डिप्रेशन या अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए लेकिन लोग उनके पास जाने से झिझकते हैं और ज़्यादा डिप्रेशन में चले जाते हैं। कुछ व्यक्ति शराब या ड्रग्स का सहारा लेते हैं जो उन्हें उभारने की बजाय बीमारी को और बढ़ा देती है। अगर हम किसी व्यक्ति को गुमसुम हालत में देखें, तो उससे बात करनी चाहिए। हमदर्दी के दो बोल उसकी ज़िंदगी बदल सकते हैं। परिवार में हंसी खुशी का माहौल हो तो मानसिक रोग दूर रहते हैं। बच्चों को समय दीजिए, उनके दोस्त होने का आभास दीजिए।

वैबिनार में लगभग 20 सदस्यों ने भाग लिया और विषय संबंधी प्रश्न भी पूछे जिनका डॉ प्रोमिला ने विस्तृत जवाब दिया

जानी मानी स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ सत्या सावंत, दूरदर्शन के पूर्व समाचार डायरेक्टर अजीत सिंह, बिजली निगम के पूर्व मुख्य संचार अधिकारी डी पी ढुल, पूर्व प्रिंसिपल डॉ राज गर्ग, कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो जे के डांग, हरीश भाटिया, सुरेश चोपड़ा, नीलम प्रूथी, संतोष डांग, संतोष ढिल्लो,  प्रज्ञा कौशिक, कमल भाटिया व अन्य सदस्यों ने भी गोष्ठी में अपने विचार रखे।


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